पशुपत्यष्टकम"
प्रिय मित्रों हर हर महादेव !
इस जगत के सम्पूर्ण चर, अचर प्राणी (पशु) के
स्वामी भगवान शिव ही हैं| उन सहस्त्र नामों से
जाने जाते हैं महेश्वर के आठ प्रमुख नामों में एक
है – पशुपति जो शिव के प्राणीमात्र के
स्वामी होने को इंगित करता है | प्रस्तुत अष्टक
शिव के इन्ही पशुपति स्वरूप की स्तुति है |
इस जगत के सम्पूर्ण चर, अचर प्राणी (पशु) के
स्वामी भगवान शिव ही हैं| उन सहस्त्र नामों से
जाने जाते हैं महेश्वर के आठ प्रमुख नामों में एक
है – पशुपति जो शिव के प्राणीमात्र के
स्वामी होने को इंगित करता है | प्रस्तुत अष्टक
शिव के इन्ही पशुपति स्वरूप की स्तुति है |
पशुपतिं द्युपतिं धरणिपतिं भुजगलोकपतिं च
सतीपतिम्।
प्रणतभक्तजनार्तिहरं परं भजत रे
मनुजा गिरिजापतिम्।।1।।
सतीपतिम्।
प्रणतभक्तजनार्तिहरं परं भजत रे
मनुजा गिरिजापतिम्।।1।।
हे मनुष्यों! स्वर्ग, मर्त्य तथा नागलोक के
जो स्वामी हैं, और जो शरणागत
भक्तजनों की पीड़ा को दूर करते हैं, ऐसे
पार्वतीवल्लभ व पशुपतिनाथ आदि नामों से
प्रसिद्ध परमपुरुष गिरिजापति शंकर भगवान्
का भजन करो।
जो स्वामी हैं, और जो शरणागत
भक्तजनों की पीड़ा को दूर करते हैं, ऐसे
पार्वतीवल्लभ व पशुपतिनाथ आदि नामों से
प्रसिद्ध परमपुरुष गिरिजापति शंकर भगवान्
का भजन करो।
न जनको जननी न च सोदरो न तनयो न च
भूरिबलं कुलम्।
अवति कोऽपि न कालवशं गतं भजत रे
मनुजा गिरिजापतिम्।।2।।
भूरिबलं कुलम्।
अवति कोऽपि न कालवशं गतं भजत रे
मनुजा गिरिजापतिम्।।2।।
हे मनुष्यों! काल के गाल में पड़े हुए इस जीव को माता, पिता, सहोदरभाई, पुत्र, अत्यन्त बल व कुल; इनमें से कोई भी नहीं बचा सकता है। अत: परमपिता परमात्मा पार्वतीपति भगवान् शिव का भजन करो।
मुरजडिण्डिमवाद्यविलक्षणं
मधुरपञ्चमनादविशारदम्।
प्रमथभूतगणैरपि सेवितं, भजत रे
मनुजा गिरिजापतिम्।।3।।
मधुरपञ्चमनादविशारदम्।
प्रमथभूतगणैरपि सेवितं, भजत रे
मनुजा गिरिजापतिम्।।3।।
हे मनुष्यों! जो मृदङ्ग व डमरू बजाने में निपुण हैं,
मधुर पञ्चम स्वर में गाने में कुशल हैं, और प्रमथ
आदि भूतगणों से सेवित हैं, उन पार्वती वल्लभ
भगवान् शिव का भजन करो।
मधुर पञ्चम स्वर में गाने में कुशल हैं, और प्रमथ
आदि भूतगणों से सेवित हैं, उन पार्वती वल्लभ
भगवान् शिव का भजन करो।
शरणदं सुखदं शरणान्वितं शिव
शिवेति शिवेति नतं नृणाम्।
अभयदं करुणावरुणालयं भजत रे
मनुजा गिरिजापतिम्।।4।।
शिवेति शिवेति नतं नृणाम्।
अभयदं करुणावरुणालयं भजत रे
मनुजा गिरिजापतिम्।।4।।
हे मनुष्यों! ‘शिव, शिव, शिव’ कहकर मनुष्य
जिनको प्रणाम करते हैं, जो शरणागत को शरण,
सुख व अभयदान देते हैं, ऐसे करुणासागरस्वरूप
भगवान् गिरिजापति का भजन करो।
जिनको प्रणाम करते हैं, जो शरणागत को शरण,
सुख व अभयदान देते हैं, ऐसे करुणासागरस्वरूप
भगवान् गिरिजापति का भजन करो।
नरशिरोरचितं मणिकुण्डलं भुजगहारमुदं
वृषभध्वजम्।
चितिरजोधवलीकृतविग्रहं भजत रे
मनुजा गिरिजापतिम्।।5।।
वृषभध्वजम्।
चितिरजोधवलीकृतविग्रहं भजत रे
मनुजा गिरिजापतिम्।।5।।
हे मनुष्यों! जो नरमुण्ड रूपी मणियों का कुण्डल
पहने हुए हैं, और सर्पराज के हार से ही प्रसन्न
हैं, शरीर में चिता की भस्म रमाये हुए हैं, ऐसे
वृषभध्वज भवानीपति भगवान् शंकर का भजन करो।
पहने हुए हैं, और सर्पराज के हार से ही प्रसन्न
हैं, शरीर में चिता की भस्म रमाये हुए हैं, ऐसे
वृषभध्वज भवानीपति भगवान् शंकर का भजन करो।
मखविनाशकरं शशिशेखरं
सततमध्वरभाजिफलप्रदम्।
प्रलयदग्धसुरासुरमानवं भजत रे
मनुजा गिरिजापतिम्।।6।।
सततमध्वरभाजिफलप्रदम्।
प्रलयदग्धसुरासुरमानवं भजत रे
मनुजा गिरिजापतिम्।।6।।
हे मनुष्यों! जिन्होंने दक्ष यज्ञ का विनाश किया,
जिनके मस्तक पर चन्द्रमा सुशोभित है,
जो निरन्तर यज्ञ करने वालों को यज्ञ का फल
देते हैं, और प्रलयावस्था में जिन्होने देव दानव व
मानव को दग्ध कर दिया है, ऐसे पार्वती वल्लभ
भगवान् शिव का भजन करो।
जिनके मस्तक पर चन्द्रमा सुशोभित है,
जो निरन्तर यज्ञ करने वालों को यज्ञ का फल
देते हैं, और प्रलयावस्था में जिन्होने देव दानव व
मानव को दग्ध कर दिया है, ऐसे पार्वती वल्लभ
भगवान् शिव का भजन करो।
मदमपास्य चिरं हृदि संस्थितं
मरणजन्मजराभयपीडितम्।
जगदुदीक्ष्य समीपभयाकुलं भजत रे
मनुजा गिरिजापतिम् ।।7।।
मरणजन्मजराभयपीडितम्।
जगदुदीक्ष्य समीपभयाकुलं भजत रे
मनुजा गिरिजापतिम् ।।7।।
हे मनुष्यों! मृत्यु, जन्म व जरा के भय से पीड़ित,
विनाशशील एवं भयों से व्याकुल इस संसार
को अच्छी तरह देखकर, चिरकाल से हृदय में स्थित अज्ञानरूप अहंकार को छोड़कर भवानीपति भगवान् शिव का भजन करो।
विनाशशील एवं भयों से व्याकुल इस संसार
को अच्छी तरह देखकर, चिरकाल से हृदय में स्थित अज्ञानरूप अहंकार को छोड़कर भवानीपति भगवान् शिव का भजन करो।
हरिविरञ्चिसुराधिपपूजितं
यमजनेशधनेशनमस्कृतम्।
त्रिनयनं भुवनत्रितयाधिपं भजत रे
मनुजा गिरिजापतिम्।।8।।
यमजनेशधनेशनमस्कृतम्।
त्रिनयनं भुवनत्रितयाधिपं भजत रे
मनुजा गिरिजापतिम्।।8।।
हे मनुष्यों! जिनकी पूजा ब्रह्मा, विष्णु व इन्द्र
आदि करते हैं, यम, जनेश व कुबेर जिनको प्रणाम
करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं और जो त्रिभुवन के
स्वामी हैं, उन गिरिजापति भगवान शिव का भजन करो।
आदि करते हैं, यम, जनेश व कुबेर जिनको प्रणाम
करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं और जो त्रिभुवन के
स्वामी हैं, उन गिरिजापति भगवान शिव का भजन करो।
पशुपतेरिदमष्टकमद्भुतं विरचितं
पृथिवीपतिसूरिणा।
पठति संशृणुते मनुजः सदा शिवपुरीं वसते लभते मुदम्।।9।।
पृथिवीपतिसूरिणा।
पठति संशृणुते मनुजः सदा शिवपुरीं वसते लभते मुदम्।।9।।
जो मनुष्य पृथिवीपति सूरी के द्वारा रचित इस
पशुपतिअष्टकम् का पाठ या इसका श्रवण
करता है,वहशिवपुरीमेंनिवासकरकेआनन्दितहोताहै।
पशुपतिअष्टकम् का पाठ या इसका श्रवण
करता है,वहशिवपुरीमेंनिवासकरकेआनन्दितहोताहै।
||●|| हर हर महादेव ||●||
||●|| वंदेमातृसंस्कृतम् ||●||
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