पुत्र, पौत्र, धन, धान्य, सुख, आदि की कामना पूति के लिये......
||अभिलाष्ट्क स्त्रोत||
एकं ब्रह्मैवा द्वितीयं समस्तं सत्यं सत्यं नेह नानास्ति किंचित |
एको रुद्रो न द्वितियोवतस्थे तस्मादेकं त्वां प्रपद्ये महेशं ||
कर्ता हर्ता त्वं हि सर्वस्व शम्भो! नाना रूपोप्यरूपः |
यद्वत्प्रत्यगधर्म एकोप्यनेकस्त स्मान्नानयम् त्वां विनेशं प्रपद्ये ||
रज्जौ सर्पः शुक्तिकायाम् च रौप्यम नैर: पूरस्तनमृगाख्ये मरीचौ |
यद्यत्सद्वद्विष्वगेव प्रपंचो यस्मिनज्ञाते तं प्रपद्द्यं महेशं ||
तोये शैत्यं दाह्कत्वं च वह्नौ तापो भानौ शीतभानौ प्रसादः |
पुष्पे गन्धो दुग्धमध्येपि सर्पिर्यत्तच्छम्भो त्वं ततस्त्वां प्रपद्ये ||
शब्दम् गृह्णास्यश्रवास्तवं हि जिघ्रस्य घ्राण स्तवं व्यंघ्रीरायासि दूरात |
व्यक्ष: पश्येस्तवं रसज्ञोप्यजिहवःकस्त्वां सम्यग्वेत्तयतस्त्वां प्रपद्ये ||
नो वेद त्वमीश! साक्षादि वेदो नो वो विष्णुर्नो विधाताखिलस्य |
नो योगिन्द्रानेन्द्रमुखाश्च देवा भक्तोवेद त्वामतस्त्वाम प्रपद्ये ||
नो ते गोत्रं नो सजन्मापि नाशो नो वा रूपं नैव शीलं न् देशः |
इत्थंभूतोपीश्वरस्त्वं त्रिलोक्या: सर्वान्कामान्पूरये स्त्वं भजेत्वाम ||
त्वत्तः सर्वे त्वं हि सर्वं स्मरारे त्वं गौरीशस्त्वं च नग्नोति शान्तः |
त्वं वै वृद्धस्त्वं युवा त्वं च बालस्तत्त्वं यत्किं नान्यतस्त्वां नतोहं ||
इस स्त्रोत का शिव समीप वर्ष भर स्वयं पाठ करने से (जो न् कर सकें किसी योग्य ब्राह्मण द्वारा संकल्पपूर्वक पाठ करावें) यह पुत्र, पौत्र, धन, धान्य, सुख, आदि की कामना [अभिलाषा] को पूर्ण करने वाला स्त्रोत है | ऐसा कहा गया कि इस के पाठ से बंध्या भी पुत्रवती हो गौरवान्वित हुई हैं|
विश्वानर नामक ब्राह्मण ने अपनी पत्नी शुचिष्मति के आग्रह पर पुत्र प्राप्ति हेतु काशी में शिव-आराधना की थी, जहाँ उसे बालरूप शिव ८ वर्ष की उम्र के बालक के रूप में मिले, तब उसने, उनकी उपरोक्त आठ पदों से स्तुति की और इस स्त्रोत को पुत्र प्राप्ति के लिए विशेष मान्यता मिली|
||अभिलाष्ट्क स्त्रोत||
एकं ब्रह्मैवा द्वितीयं समस्तं सत्यं सत्यं नेह नानास्ति किंचित |
एको रुद्रो न द्वितियोवतस्थे तस्मादेकं त्वां प्रपद्ये महेशं ||
कर्ता हर्ता त्वं हि सर्वस्व शम्भो! नाना रूपोप्यरूपः |
यद्वत्प्रत्यगधर्म एकोप्यनेकस्त स्मान्नानयम् त्वां विनेशं प्रपद्ये ||
रज्जौ सर्पः शुक्तिकायाम् च रौप्यम नैर: पूरस्तनमृगाख्ये मरीचौ |
यद्यत्सद्वद्विष्वगेव प्रपंचो यस्मिनज्ञाते तं प्रपद्द्यं महेशं ||
तोये शैत्यं दाह्कत्वं च वह्नौ तापो भानौ शीतभानौ प्रसादः |
पुष्पे गन्धो दुग्धमध्येपि सर्पिर्यत्तच्छम्भो त्वं ततस्त्वां प्रपद्ये ||
शब्दम् गृह्णास्यश्रवास्तवं हि जिघ्रस्य घ्राण स्तवं व्यंघ्रीरायासि दूरात |
व्यक्ष: पश्येस्तवं रसज्ञोप्यजिहवःकस्त्वां सम्यग्वेत्तयतस्त्वां प्रपद्ये ||
नो वेद त्वमीश! साक्षादि वेदो नो वो विष्णुर्नो विधाताखिलस्य |
नो योगिन्द्रानेन्द्रमुखाश्च देवा भक्तोवेद त्वामतस्त्वाम प्रपद्ये ||
नो ते गोत्रं नो सजन्मापि नाशो नो वा रूपं नैव शीलं न् देशः |
इत्थंभूतोपीश्वरस्त्वं त्रिलोक्या: सर्वान्कामान्पूरये स्त्वं भजेत्वाम ||
त्वत्तः सर्वे त्वं हि सर्वं स्मरारे त्वं गौरीशस्त्वं च नग्नोति शान्तः |
त्वं वै वृद्धस्त्वं युवा त्वं च बालस्तत्त्वं यत्किं नान्यतस्त्वां नतोहं ||
इस स्त्रोत का शिव समीप वर्ष भर स्वयं पाठ करने से (जो न् कर सकें किसी योग्य ब्राह्मण द्वारा संकल्पपूर्वक पाठ करावें) यह पुत्र, पौत्र, धन, धान्य, सुख, आदि की कामना [अभिलाषा] को पूर्ण करने वाला स्त्रोत है | ऐसा कहा गया कि इस के पाठ से बंध्या भी पुत्रवती हो गौरवान्वित हुई हैं|
विश्वानर नामक ब्राह्मण ने अपनी पत्नी शुचिष्मति के आग्रह पर पुत्र प्राप्ति हेतु काशी में शिव-आराधना की थी, जहाँ उसे बालरूप शिव ८ वर्ष की उम्र के बालक के रूप में मिले, तब उसने, उनकी उपरोक्त आठ पदों से स्तुति की और इस स्त्रोत को पुत्र प्राप्ति के लिए विशेष मान्यता मिली|
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