Wednesday, April 8, 2015

"त्रिगुणाधीश परमात्मा की जय हो "
' शिवम् शान्तं अद्वैतं चतुर्थं मन्यन्ते स आत्मा सविज्ञेय'- श्रुतियों में जिस आत्मा को "शिव"
अथवा ॐ कार कहा गया है , वही अचिन्त्यस्वरूप परमात्मा तटस्थ रूप से जगत की
उत्पत्ति , स्थिति और लय करते हैं | हे मनुष्यों ! सकल जगत के अंतरात्मस्वरूप उस एक ईश्वर का ही भजन करो !
ॐ जय शिव ॐ कारा , प्रभु जय शिव ॐ कारा
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव , अर्धांगी धरा
ॐ जय शिव ॐ कारा ...
एकानन चतुरानन पंचानन राजे
हंसानन , गरुड़ासन वृषवाहन साजे
ॐ जय शिव ॐ कारा ....
दो भुज , चार चतुर्भुज दशभुज अति सोहे
तीनों रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे
ॐ जय शिव ॐ कारा ...
अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी
जय शिव ॐ कारा ...
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे
सनकादिक ब्रह्मादिक भूतादिक संगे
ॐ जय शिव ॐ कारा ...
करमध्ये तु कमण्डलु चक्र त्रिशूलधर्ता
जगकर्ता जगहर्ता जगपालनकर्ता
ॐ जय शिव ॐ कारा ...
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका
ॐ जय शिव ॐ कारा ...
त्रिगुणस्वामी जी की आरती जो कोई नर गावे
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे
जय शिव ॐ कारा ...||

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