प्रयासपूर्वक अपने स्वभाव (स्व+भाव) में निरंतर रहना चाहिए ......
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स्वभाव में रहने वाला साधक ही जीवन में आध्यात्मिक सफलता प्राप्त कर सकता है|
हरेक साधक को प्रयासपूर्वक सर्वदा निरंतर अपने स्वभाव में यानि स्वस्थ (स्व+स्थ) रहना चाहिए|
प्रभाव (प्र+भाव) में रहने वाला साधक विक्षेप और आवरण की मायावी शक्तियों का शिकार हो जाता है| उसकी प्रगति रुक कर अधोगति शुरू हो जाती है, और तमोगुण उस पर हावी हो जाता है|
दूसरों के व्यवहार से हमारी शांति भंग नहीं होनी चाहिए| कुसंग का सर्वदा त्याग करने का साधक के लिए शास्त्रों का आदेश है|
परमशिवभाव ही हमारा स्वभाव है| शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि| ॐ ॐ ॐ ||
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स्वभाव में रहने वाला साधक ही जीवन में आध्यात्मिक सफलता प्राप्त कर सकता है|
हरेक साधक को प्रयासपूर्वक सर्वदा निरंतर अपने स्वभाव में यानि स्वस्थ (स्व+स्थ) रहना चाहिए|
प्रभाव (प्र+भाव) में रहने वाला साधक विक्षेप और आवरण की मायावी शक्तियों का शिकार हो जाता है| उसकी प्रगति रुक कर अधोगति शुरू हो जाती है, और तमोगुण उस पर हावी हो जाता है|
दूसरों के व्यवहार से हमारी शांति भंग नहीं होनी चाहिए| कुसंग का सर्वदा त्याग करने का साधक के लिए शास्त्रों का आदेश है|
परमशिवभाव ही हमारा स्वभाव है| शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि| ॐ ॐ ॐ ||
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