Sunday, April 12, 2015

श्री शिव चालीसा

श्री शिव चालीसा || दोहा || श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान । कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥ जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥ भाल चन्द्रमा सोहत नीके । कानन कुण्डल नागफनी के॥ अंग गौर शिर गंग बहाये । मुण्डमाल तन छार लगाये ॥ वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे । छवि को देख नाग मुनि मोहे ॥ मैना मातु की ह्वै दुलारी । बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥ कर त्रिशूल सोहत छवि भारी । करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥ नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे । सागर मध्य कमल हैं जैसे॥ कार्तिक श्याम और गणराऊ । या छवि को कहि जात न काऊ ॥ देवन जबहीं जाय पुकारा । तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥ किया उपद्रव तारक भारी । देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥ तुरत षडानन आप पठायउ । लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥ आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥ त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई । सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥ किया तपहिं भागीरथ भारी । पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥ दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं । सेवक स्तुति करत सदाहीं॥ वेद नाम महिमा तव गाई । अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥ प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला । जरे सुरासुर भये विहाला॥ कीन्ह दया तहँ करी सहाई । नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥ पूजन रामचंद्र जब कीन्हा । जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥ सहस कमल में हो रहे धारी । कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥ एक कमल प्रभु राखेउ जोई । कमल नयन पूजन चहं सोई॥ कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर । भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥ जय जय जय अनंत अविनाशी । करत कृपा सब के घटवासी॥ दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥ त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो । यहि अवसर मोहि आन उबारो॥ लै त्रिशूल शत्रुन को मारो । संकट से मोहि आन उबारो॥ मातु पिता भ्राता सब कोई । संकट में पूछत नहिं कोई॥ स्वामी एक है आस तुम्हारी । आय हरहु अब संकट भारी॥ धन निर्धन को देत सदाहीं । जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥ अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी । क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥ शंकर हो संकट के नाशन । मंगल कारण विघ्न विनाशन॥ योगी यति मुनि ध्यान लगावैं । नारद शारद शीश नवावैं॥ नमो नमो जय नमो शिवाय । सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥ जो यह पाठ करे मन लाई । ता पार होत है शम्भु सहाई॥ ॠनिया जो कोई हो अधिकारी । पाठ करे सो पावन हारी॥ पुत्र हीन कर इच्छा कोई । निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥ पण्डित त्रयोदशी को लावे । ध्यान पूर्वक होम करावे॥ त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा । तन नहीं ताके रहे कलेशा॥ धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे । शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥ जन्म जन्म के पाप नसावे । अन्तवास शिवपुर में पावे॥ कहे अयोध्या आस तुम्हारी । जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥ ॥ दोहा ॥ नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा। तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश ॥ मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान । अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण ॥ ॥ इति शिव चालीसा Shri Shiva chalisa
|| Doha |
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