Monday, April 13, 2015

अधूरे सच

एक सवाल सदियों से पूछा जाता रहा है कि दुनिया में सत्य क्या है? इसका जवाब भी उतना ही पुराना है - परमात्मा ही सबसे बड़ा सत्य है। यह तो है सत्य की दार्शनिक परिभाषा। दैनिक जीवन में आधे सच या आधे झूठ को पूरा सच नहीं माना जाता। दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसा वचन पूरा झूठ ही होता है। 

युधिष्ठिर बहुत बड़े तपस्वी, महात्मा, नीति के ज्ञाता और सत्यवादी थे, लेकिन एक बार उन्होंने भी ऐसी बात कही थी जो पूरी तरह से सच के दायरे में नहीं आती। यह बात तब की है जब महाभारत का युद्ध जोरों पर था। दोनों सेनाओं के योद्धा एक दूसरे पर शस्त्रों से प्रहार कर रहे थे। 

कौरवों की सेना बहुत बड़ी थी। उसमें भीष्म, द्रोण जैसे अनुभवी योद्धा थे। गुरु द्रोणाचार्य कौरवों और पांडवों के शिक्षक भी थे। उन्हीं से दोनों पक्ष के बड़े योद्धाओं ने युद्ध विद्या सीखी थी। 

पांडवों की विजय में सबसे बड़ी बाधा थे - गुरु द्रोणाचार्य। कृष्ण जानते थे कि द्रोणाचार्य के जीवित रहते पांडवों की विजय असंभव है। तब उन्होंने एक योजना बनाई। इसके तहत भीम ने युद्ध में एक हाथी को मार दिया जिसका नाम अश्वत्थामा था। 

चूंकि द्रोणाचार्य के पुत्र का नाम भी अश्वत्थामा था। उन्हें पुत्र से बहुत प्रेम था। तब भीम ने उच्च स्वर में यह समाचार सुनाया - अश्वत्थामा मारा गया। मैंने उसका वध कर दिया। 

द्रोणाचार्य यह सुनकर दुखी हो गए। उन्हें यकीन नहीं हुआ कि अश्वत्थामा जैसा योद्धा युद्ध में इतनी आसानी से मारा जा सकता है। उन्होंने युधिष्ठिर से पूछा - क्या सच में अश्वत्थामा मारा गया?

युधिष्ठिर ने कहा, अश्वत्थामा मारा गया, लेकिन मनुष्य नहीं पशु। जब उन्होंने मनुष्य नहीं पशु - कहा तो कृष्ण ने शंख बजा दिया। शंख की ध्वनि से द्रोणाचार्य वे शब्द सुन नहीं सके। 

उन्होंने अपना धनुष नीचे रख दिया और युद्धभूमि में ही बैठ गए। उसी दौरान द्रोपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने उनका वध कर दिया। युधिष्ठिर ने जो कहा, वह झूठ नहीं था लेकिन जिस तरीके से वह कहा गया, वह पूरी तरह से सच भी नहीं था। इसकी वजह से कौरवों की हार हो गई थी।

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