Tuesday, April 14, 2015

इतिहास

कभी इतिहास को उस नज़र से देखें, जिस तरह से इतिहास वास्तव में खुद को दिखाना चाहता है तो अचरज़ ही अधिक पैदा होता है। राज, रहस्य, रोमांच तथा अबूझ पहेलियां कभी डराती हैं, कभी सांत्वना देती हैं और कभी एक नई दृष्टि के साथ उत्साह भर जाती हैं।



क्या कभी कोई अंदाजा भी लगा सकता है कि जब समाज लगभग आदिम अवस्था में था उस समय एक विशाल साम्राज्य आकार लेगा तथा अराजकता का विनाश हो जाएगा! क्या चक्रवर्ती सम्राट की अवधारणा, साकार हो जाएगी और वो भी ऐसे वक्त में जबकि पश्चिमोत्तर सीमा से विभिन्न आक्रमण हो रहे हों।



इन्हीं युद्धों के माहौल में ‘तक्षशिला’ में कुछ ऐसा घटित होने जा रहा था, जिसने पूरे भारतवर्ष की अगले कई शताब्दियों तक नियति ही बदल कर रख दी। यही वो समय था जबकि एक विपन्न किंतु मेधा सम्पन्न महापुरुष ने साम्राज्यों की महागाथा रच डाली।



यहां आज हम बात कर रहे हैं परम मेधावी, ओज सम्पन्न आचार्य विष्णुगुप्त या फिर कौटिल्य अथवा चाणक्य की। चाहे जिस भी नाम से उन्हें पुकार लीजिए किंतु उस काल में उन्हें इन्हीं विरुदों से जाना जाता था।



सीमाप्रांतों में हाहाकार मचा हुआ था। घनानंद के अत्याचार से जनता जितनी दुःखी थी, उससे कहीं ज्यादा आतंक अलेक्जेंड्रिया के सिकंदर ने ने फैला रखा था। पुरु जैसे महानतम सम्राटों की भी चूलें हिल चुकी थीं तथा सीमावर्ती प्रदेशों पर यूनानी क्षत्रपों का आतंक अपनी बर्बरता के सीमाएं तोड़ रहा था।



ऐसे में पंजाब के चणक क्षेत्र में एक महामना का उद्भव हुआ, जिसने न केवल पाटलिपुत्र के तत्कालीन शासक वंश को निर्मूल ही किया वरन् भारत को सबसे महान मौर्य वंश की सत्ता से प्रतिष्ठित भी किया।



चाणक्य के जन्म स्थान से संबंधित कई अनुमान लगाए जाते हैं। इतिहासकारों में उनके जन्म समय तथा स्थान को लेकर अधिक मतभेद हैं। कोई भी सर्वमान्य मत न होने पर तक्षशिला ही मानना ज्यादा युक्तिसंगत प्रतीत होता है। बौद्ध मतानुसार तक्षशिला नगरी में ही आचार्य चाणक्य का जन्म हुआ था इसीलिए उनका प्रारम्भिक कार्य क्षेत्र या उल्लेख इसी से संबंधित मिलता है।



एक इतिहासकार सुब्रहण्यम ने सिकंदर और कौटिल्य के मुलाकात की चर्चा करते हुए ये कहा है चूंकि ये मिलन पंजाब के क्षेत्र में हुआ इसलिए कौटिल्य को तक्षशिला से संबंधित मानने में कोई संदेह नहीं होना चाहिए।



हां, ये अवश्य है कि उनके पिता के नाम ‘चणक’ पर आम सहमति है तथा इस पर भी कोई संदेह नहीं कि वे बेहद विपन्न परिवार से थे। किंतु तीव्र मेधा सम्पन्न चाणक्य को जब पाटलिपुत्र के महान किंतु क्रूर शासक घनानंद का आमंत्रण मिलता है तो वहीं से पहली बार भारत का इतिहास बदल देने वाली घटना का आविर्भाव होता दिखाई पड़ता है।



घटना कुछ यूं है कि एक बार पाटलिपुत्र सम्राट घनानंद के यहां भोज पर युवा विष्णुगुप्त को भी आमंत्रण मिला। किंतु उनके श्याम वर्ण के कारण घनानंद ने उनका अपमान करते हुए भोज से उन्हें उठवा दिया। भारी अपमान से तिलमिलाए विष्णुगुप्त ने अपनी शिखा को बांधते हुए ये कठोर प्रतीज्ञा की कि ‘जब जक नंद वंश का समूल विनाश नहीं हो जाता तब तक अपनी शिखा नहीं खोलूंगा’।



विशाखदत्त कृत मुद्राराक्षस में चाणक्य संबंधी कथा का रोचक वर्णन किया गया है। संस्कृत के इस ऐतिहासिक नाटक में चाणक्य की नीतियों, उनकी अभूतपूर्व सफलताओं सहित नंद वंश के उन्मूलन का व्यापक उल्लेख हुआ है। कैसे किन परिस्थितियों में चाणक्य ने तत्कालीन सर्वाधिक प्रतिष्ठित साम्राज्य का विनाश कर अपनी कूटनीति से युवा मौर्य चन्द्रगुप्त को सत्ता हासिल करवाई, इसका यथार्थ व तथ्यात्मक वर्णन मुद्राराक्षस करता है।



चाणक्य ने अपनी रचना ‘अर्थशास्त्र’ के पंद्रह अधिकरणों में राज्य नीति, सैन्य नीति, समाज नीति, अर्थनीति, गुप्तनीति आदि विषयों पर विस्तार से चर्चा की थी, जिसे आज भी लोकप्रशासन तथा राजनीति का प्रमुख स्तम्भ ग्रंथ माना जाता है।

No comments:

Post a Comment