Tuesday, April 14, 2015

शरीर और आत्मीय शक्ति

कई बार बेहद मामूली कारणों से आप दुनिया को समझ नहीं पाते। उन मामूली कारणों के बारे में सोचिए, जो शायद दैनिक व्यवहार का हिस्सा हैं। जैसे, आप मानते हैं कि काम पर जाते समय आप एक कप कॉफी आसानी से खरीद सकते हैं और ऐसा होता है। वहन करने की क्षमता, यहां कोई मुद्दा नहीं है। आप मानते हैं कि बस स्टॉप तक जाना आसान है। इसलिए, शारीरिक पाबंदी भी यहां कोई मुद्दा नहीं है। आप मानते हैं कि आप सांस ले सकते हैं। आपका शारीरिक तंत्र, हवा खींचने और बाहर निकालने में सक्षम है और ऐसा होता भी है। लेकिन, उन लोगों के बारे में सोचिए, जिनके लिए ये सब चीजें मुश्किल हैं। तब आपको महसूस होगा कि कुछ लोग चाहकर भी अपने लिए कॉफी नहीं ला सकते, कुछ कदम नहीं चल सकते और ढंग से सांस नहीं ले सकते।

खुद से पूछें कि कहीं ये सब परेशानियां आपके कमजोर विश्वास के कारण तो नहीं आ रहीं। हो सकता है कि कमजोर विश्वास की वजह से हर बार आपके सामने परेशानियां आती हों। कारण जो भी हो, आकर्षण का सिद्धांत, उन सभी चीजों को पास ले आता है, जो आपकी पहुंच से दूर हैं। कोई भी अपनी ज़िंदगी में परेशानियां नहीं चाहता। कॉफी का एक कप खरीदना, कुछ कदम चलना या सांस लेना बहुत से लोगों के लिए सामान्य बात है। हालांकि, कई लोगों के लिए यह दुर्गम पहाड़ पार करने से ज्यादा नहीं है।

यहां हम ज़िंदगी की बड़ी समस्याओं, जैसे कि पैसे या संबंधों की बात नहीं कर रहे। कई भावनात्मक डर, हमारे मन में पिछले अनुभवों और बचपन की यादों के कारण घर कर जाते हैं। यही डर हमारी वर्तमान ज़िंदगी में किए जाने वाले कार्यों के आड़े आते हैं। कई लोगों के लिए ये चीजें मुश्किल नहीं हैं। हालांकि, हमें इन परेशानियों के कारण ढूंढने में ज्यादा समय खराब नहीं करना चाहिए।

परेशानियां हमारे सामने ही हैं, जो एकदम स्पष्ट हैं और हमारी वर्तमान ज़िंदगी में खलल डाल रही हैं। हम किस तरह इस असंतुलन को ठीक कर सकते हैं? किस तरह हम इन दुर्गम पहाड़ों को छोटे पत्थरों में बदल सकते हैं, जिन्हें हम आसानी से लांघ जाए? शायद हम इन समस्याओं को आसानी से हरा दें। जवाब आसान है। आकर्षण के सिद्धांत के जरिए हम अपने विचारों को नई संभावनाओं में बदल सकते हैं। रचनात्मक विचारों को इस्तेमाल करके, हम मानसिक कसरत कर सकते हैं, ताकि नई संभावनाओं को लाया जा सके।

हमें एक मैराथन धावक की तरह सोचना होगा, जो अपनी क्षमताओं को धीरे-धीरे बढ़ाता है और बाद में एक लंबी छलांग लगाता है। इस मानसिकता के साथ आप बड़े से बड़ा पहाड़ चुटकियों में पार कर सकते हैं और सफलता का मुकाम पा सकते हैं। इस दौरान ऊर्जा का स्पंदन चरम पर होता है और सभी चुनौतियों को पार करने में सक्षम होता है। सब कुछ संभव है और भय को बाहर निकालने के विश्वास के साथ ही आप सभी परेशानियों से मुक्ति पा सकते हैं।

असल में, जैसा हो रहा है, वैसा न होने दें। इसी से दैवीय शक्ति जागृत होती है। थोड़ी सी बाहरी शक्ति के ज़रिये आप खुद को अधिक शक्तिशाली बना सकते हैं। याद रखिए, ईश्वर एक है और वो हर जगह, हर कण में विद्यमान है। वो पानी की बूंद में है, धूल में है, आकाश में है और हर आत्मा में है। 

हालांकि, जिस तरह समुद्र से अलग होकर पानी की एक बूंद भी कमजोर हो जाती है, उसी तरह ईश्वर से अलग होकर भी शरीर क्षीण पड़ जाता है। जैसे हवा किसी गुब्बारे में भरकर उसे ऊपर उठाती है और खुद को गुब्बारे का हिस्सा मानने लगती है। यही हवा जब गुब्बारे से निकाल दी जाती है तो उसे कमजोर बना देती है। हालांकि, गुब्बारे से बाहर रहकर भी हवा, किसी घर को जला सकती है, प्राणियों को जीवित रख सकती है और वनस्पतियों के लिए वरदान साबित हो सकती है।

गुब्बारे के प्लास्टिक आवरण को नुकसान पहुंचने पर हवा अपनी शक्ति भूल जाती है और आसमान में फैल जाती है। इंसान, हवा की तरह है। शक्तिमान और सामर्थ्यवान। सभी दैवीय सूत्रों को भूल जाइए और पूरी तरह शरीर और आत्मीय शक्ति को समझिये। इस विश्वास के साथ आप हमेशा शक्तिशाली महसूस करेंगे और सभी बाधाओं को पार कर पाएंगे।

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