Wednesday, April 15, 2015

मंत्र का महत्व




मंत्र के विषय में वैदिक मत है कि मंत्र धर्म शास्त्रो एवं ग्रंथो से ली जानेवाली देवी देवताओ कि ऐसी प्रार्थना अथवा ऐसे शब्द का स्वरुप है जिसके जप या मनन से देवी देवताओ को प्रसन्न करके अपनी कामना पूर्ण की जा सकती है |मननात, त्रायते इति मंत्र : |अर्थात: जिसका मनन करने से जो त्राण करे, रक्षा करे उसे मंत्र कहते है |श्रीमद भगवत गीता में साक्षात् भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है की भेट तथा अर्पण में सर्वश्रेष्ठ जाप रूप अर्पण में हुँ |इसी प्रकार राम चरित मानस में गोस्वामी तुलसी दास ने मंत्र की महिमा का निम्न वर्णन किया है |कलियुग केवल नाम आधारा, सुमिर सुमिर नर पावहि पारा |मंत्र के जानकारो के अनुसार मनुष्य के भाग्य चक्र या कर्मो से उत्पन्न होने वाले दुखो का निवारण मंत्रो द्वारा किया जा सकता है | सांसारिक भोगो कि प्राप्ति एवं आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति हेतु मंत्र जप बहुत ही प्रभावशाली माना गया है | क्योकि मंत्र सभी प्रकार के सांसारिक दुखो को नाश करने वाले और मुक्ति प्रदान करने में पूर्ण रूप से समर्थ है | प्राचीनकाल से ही मंत्र जाप को हमारे ऋषि मुनियो ने बहुत सरल और कारगर उपाय माना है | पूर्ण श्रद्धा भक्ति से मंत्र जाप करने से निश्चित रूप से मनुष्य के सभी दुखो और पापो का शमन होता है |मंत्र जाप की सफलता में गुरु की भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण होती है | बिना गुरु के मार्गदर्शन और आशीर्वाद के कोई भी व्यक्ति मंत्र सिद्ध करने में सफल नही हो सकता | इसी प्रकार गुरु ही तय करता है की कोनसा मंत्र, किस व्यक्ति पर जल्दी फलीभूत होगा |मंत्र सिद्धि प्राप्त करने के कुछ महत्वपूर्ण नियम :-* भूमि पर शयन * ब्रम्हचर्य का पालन* मौन * गुरु सेवा* त्रिकाल स्नान * पाप कर्मो का पूर्ण त्याग * नित्य पूजन * नित्य दान* इष्ट का पूजन* इष्ट और गुरु में विश्वास* जप में पूर्ण निष्ठाअतः मंत्र दिखने में छोटे होते है परन्तु उसका प्रभाव बहुत बड़ा होता है | हमारे पूर्वज ऋषि मुनियो ने मंत्र के बल से ही बहुत सी सिद्धिया और चिरस्थायी ख्याति प्राप्त कि है |

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