Tuesday, April 14, 2015

क्वांटम सिद्धांत और अद्वैत के बीच समानता

व्यस्तता के नियम दीपक एम रानाडे पुणे निवासी न्यूरोसर्जन दीपक एम रानाडे क्वांटम सिद्धांत और अद्वैत के बीच समानताओं को बता रहे हैं।  सृजन के रहस्य को समझने का क्षरण एक साधन है, इसको लेकर भौतिकी में लंबी खोज हो चुकी है।  कण परमाणु को रास्ता देते हैं, जो पहले क्वार्क के लिए रास्ता बनाते हैं और उसके बाद में बोसॉन के लिए और खोज चलती रहती है। स्ट्रिंग सिद्धांत की परिकल्पना बताती है कि सभी भिन्न प्रकार के कण एक ही ब्लॉक में रहते हुए भिन्न प्रकार की परम आवृत्तियों वाले होते हैं, इन्हें स्ट्रिंग कहते हैं। यह स्ट्रिंग है जो कि सभी सृजन में एक साथ गुथी रहती हैं।  मनोवैज्ञानिकों का अमृत प्यालाआइंस्टीन ने पदार्थ और ऊर्जा के रूपांतरण को सिद्ध किया था। उनके समीकरण, E=mc2, ने पदार्थ और ऊर्जा के परस्पर रुपांतरण के बारे में बताया। उन्होंने चेतना के एकीकरण को इस समीकरण में शामिल नहीं किया।  चेतना न केवल ऊर्जा और पदार्थ को जन्म देती है, इसके साथ ही पूर्ण परिज्ञान भी देती है, यह स्वयं का परिज्ञान संभव करती है। एक समीकरण जिसका मूल चेतना हो संभवतः वही थ्योरी ऑफ एवरीथिंग हो जो कि मनोवैज्ञानिकों का अमृत कलश रहा है। ईश्वर पासा नहीं फेंकता है, यह आइंस्टीन का कथ्य है जिन्होंने लगातार कई सिद्धांतों को प्रस्तुत किया जो क्वांटम भौतिकी के एकीकरण पर प्रश्न करते थे।  ऐसा ही एक प्रयास ईपीआर पैराडॉक्स था जिसे उन्होंने रॉसेन और पोडोस्की के साथ प्रस्तुत किया था। हाइजनबर्ग के अनिश्चितता के सिद्धांत में एक कण की गति और स्थिति दोनों का वास्तविक पूर्वानुमान करने की संभावना रखी गई थी। ईपीआर पैराडॉक्स में बताया गया कि अगर कोई दोनों उलझे हुए कणों में से एक की स्थिति और दूसरे की गति को जान लें, तब दोनों कणों के चरों की सही जानकारी मिल पाएगी।   कणों का प्रभावजैसा कि श्रोंडिगर द्वारा बताया गया कि दो कण उलझे हुए थे, वे एक गति से विपरीत दिशा में चल रहे थे। दूसरे कण के बारे में जानकारी तुरंत ही, प्रकाश की गति की तेजी से मिलेगी। आइंस्टीन इस प्रभाव को स्पूकी कहते थे, जैसे इसने भौतिकी के प्रचलित नियमों को परिभाषित किया। यह गैर-स्थानिक वैज्ञानिक मतांतर था, न केवल एक पैराडॉक्स। यह हाइजबर्ग के सिद्धांत के विरुद्ध था और क्वांटम सिद्धांत कई मूलों पर प्रश्न खड़ा कर रहा था। यह वैचारिक प्रयोग बाद में प्रयोगशाला में सिद्ध हुआ था।  1997 में निकोलस जिसीन और साथियों ने जेनेवा विश्वविद्यालय में दो उलझे हुए फोटॉनों का प्रयोग करके सात मील की दूरी तक साधारण लेकिन तात्कालिक संवाद किया था। क्वांटम उलझन असाधारण दूरी पर मौजूद कणों के एक दूसरे के साथ तात्कालिक और प्रकाश की गति से भी तेज संवाद करने का मौका देती है। इसके पीछे की यांत्रिकी को किसी और सिद्धांत से नहीं समझा जा सकता है। एक सिद्धांत बताता है कि सभी पदार्थ एक बार एकीकृत अवस्था में निहित थे, और इसी प्रकार जुड़े हुए थे। एकरुपता पिरामिड अवस्था में अ-द्वैत अवस्था दिखती थी।  त्रिमूर्ति और इसका मूल्यसंभवतः उलझन अद्वैत या अ-द्वैत का सर्वोत्तम प्रमाण है। लंबी दूरी होने के बावजूद सूचना का तत्काल प्रवाह जो संभवतः सही या काल्पनिक होता है। समय व स्थान सचेतन औजारों के भ्रांतिकारक कार्यक्रम हो सकते हैं। जैसा कि संत धनेश्वर की सलाह थी—प्रेक्षक, प्रेक्षण और प्रेक्ष्य की त्रिमूर्ति वास्तव में एकता है। उलझन का एक अधिक विस्मयकारी पहलू यह है कि कण के घूर्णन को न देखा जाना कई में से एक संभावना हो सकती है। इसका मूल्य तब होता है जब इसका प्रेक्षण किया जाए। ऐसे ही बहुत तत्काल, यह सूचना उलझे कण से संबंधित है जो तीव्रता से संगत व्युतक्रम मूल्य ग्रहण करता है। यहां, प्रेक्षक, प्रेक्ष्य और प्रेक्षण की प्रक्रिया एक दूसरे पर निर्भर और एक दूसरे को प्रभावित करने वाली होती है। कण एक मूल्य तब लेता है जब उसे अनुभूति होती है कि उसे देखा जा रहा है, यह उसे उतना ही चेतनामय बनाता है जितना की देखना वाला होता है—यद्यपि इस बात की कल्पना हास्यास्पद है कि चेतना परमाणु दुनिया का एक भाग है।   अहं ब्रह्मास्मिइस सूचना का उलझे हुए कण तक तात्कालिक रुपांतरण संभवतः हमारे सहज अनुभव के द्वारा साधे गए दुविधा के क्षेत्र में अपरिभाषित प्रतीत होता है। यह प्रकट अलगाव संभवतः भ्रम है जो कि हमारे पुराणों में लिखा है। संभवतः उलझन आखिरकार अहं ब्रह्मास्मि—मैं ब्रह्म हूँ, या तत्वमसि—मैं वह हूँ—के कथन पर खरी उतरती है। वहां चेतना के असंख्य रुपों में कोई अलगाव या भिन्नता का अस्तित्व नहीं है। वास्तविकता की अवस्था, जगत को दूसरे आयाम में बहुत ही बेहतर तरह से देखना हो सकती है। दूसरे शब्दों में, एक ‘क्वांटम परम-उलझन की अवस्था होती है’। 

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