Saturday, April 11, 2015

आत्मज्ञान का सदुपयोग

महाकश्यप भगवान बुद्ध के प्रिय शिष्य थे। बुद्ध उनकी त्याग भावना तथा ज्ञान से संतुष्ट होकर बोले, वत्स, तुम आत्मज्ञान से पूर्ण हो चुके हो, तुम्हारे पास वह सब है, जो मेरे पास है। अब जाओ और सत्यसंदेश का जगह-जगह प्रचार-प्रसार करो।
महाकश्यप ने ये शब्द सुने, तो वह मायूस हो गए। वह बोले, गुरुदेव, यदि मुझे पहले ही पता चल जाता कि आत्मज्ञान उपलब्ध होते ही मुझे आपसे दूर जाना पड़ेगा, तो मैं इसे प्राप्त करने की कोशिश ही नहीं करता।
मुझे आपके साथ रहने पर परमआनंद की अनुभूति होती है। उससे में कभी भी वंचित नहीं होना चाहता। मैं अपने आत्मज्ञान को भुला देना चाहता हूं।
भगवान बुद्ध ने अपने इस अनूठे शिष्य को गले से लगा लिया। उन्होंने समझाया कि, तुम सदविचारों व ज्ञान का प्रचार करते समय जहां भी रहोगे, मुझे अपने पास ही पाओगे। मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ हमेशा रहेगा। इस तरह महाकश्यप अपने अभियान की ओर चल पढ़ा।

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