Monday, April 13, 2015

राम नहीं लक्ष्मण करते हैं रावण का वध

शास्त्रों और प्रमुख आध्यात्मिक ग्रंथों के अलावा कुछ कथाएं भी जनजीवन में प्रचलित होती हैं। ऐसी ही एक कथा रावण के बारे में भी प्रचलित है। रामायण के अनुसार श्री राम ने रावण के साथ युद्ध किया और युद्ध में ही रावण मारा गया। 

इस कथा के अलावा एक और कथा भी राजस्थान में प्रचलित है। उसके मुताबिक रावण का वध श्रीराम ने नहीं, बल्कि उनके छोटे भाई लक्ष्मण ने किया था। यह काफी आश्चर्यजनक बात है लेकिन राजस्थान में कई स्थानों पर प्रचलित लोक-कथाएं इस बात पर बल देती हैं कि लक्ष्मण ने ही रावण का अंत किया था। इस मान्यता के अनुसार रावण के प्राण सूर्य के रथ के एक घोड़े की नासिका में थे। लक्ष्मण को यह जानकारी हुई और उन्होंने रावण का अंत कर दिया। 
 
यह मान्यता राजस्थान के भोपा समुदाय में भी प्रचलित है। वे गाने-बजाने में निपुण होते हैं और इस कथा का गायन भी करते हैं। उनकी कथा के नायक पाबूजी हैं। इसमें वे राम, लक्ष्मण, सीता के पूर्व जन्मों के बारे में भी बताते हैं। यह कथा सैकड़ों वर्ष पुरानी है। 

कथा के अनुसार लक्ष्मण पाबूजी के रूप में अवतरित हुए थे। पाबूजी के पिता का नाम दढल था। उनके दो बेटे और थे जो पाबूजी के सौतेले भाई थे। उनका नाम बुरो और प्रेमा था। 

यह तब की बात है जब दढल जवान थे। उन्होंने एक सुंदर कन्या से विवाह करने का प्रस्ताव रखा। उसने एक शर्त पर विवाह के लिए सहमति जताई कि दढल उससे कभी नहीं पूछेंगे कि दिन ढलने के बाद वह कहां जाती है। अगर पूछा तो वह उन्हें छोड़कर चली जाएगी। दढल ने शर्त स्वीकार कर ली। दोनों का विवाह हो गया। 

विवाह के बाद दढल को दो संतानें प्राप्त हुईं - पाबूजी और सोना। एक रात दढल ने सोचा कि मेरी पत्नी रात को कहां जाती है? मुझे उसका पीछा करना चाहिए। यह सोचकर उसने पत्नी का पीछा किया। जंगल में जाकर उसने देखा कि वह एक शेरनी के रूप में अपने बेटे को दूध पिला रही है। 

दढल ने वचन तोड़ा था इसलिए उनकी पत्नी छोड़कर चली गई। जाते हुए वह अपने बेटे पाबूजी से वादा कर गई कि वह उन्हें एक चमत्कारी घोड़ी, कलमी के रूप में मिलने आएगी। 

कुछ वर्षों बाद दढल की मृत्यु हो गई। अब पूरे राजपाट पर सौतेले भाई बुरो का कब्जा था। उसने पाबूजी को बेदखल कर दिया। इस कथा में यह भी बताया जाता है कि देवी देवल ने पाबूजी को एक चमत्कारी घोड़ी दी थी। इस प्रकार उनकी मां का वचन भी सत्य हो गया। 

इस दौरान रावण की तरह ही दुष्ट किस्म के एक व्यक्ति से पाबूजी का युद्ध हुआ था। युद्ध में वह मारा गया। युद्ध के बाद शांति प्रयासों के तहत बुरो ने अपनी बहन प्रेमा का विवाह उसके बेटे जिंधर्व के साथ कर दिया, लेकिन जिंधर्व अपने पिता की हार को नहीं भूला। 

उसकी नजर बुरो की संपत्ति और पाबूजी की प्रिय गाय पर थी। सिंध की राजकुमारी फूलवती ने जब पाबूजी की वीरता के बारे में सुना तो वह उनसे विवाह करने के लिए तैयार हो गई। दोनों का विवाह सिंध में हो रहा था लेकिन एक वजह से वह पूर्ण नहीं हुआ। 

फेरों के दौरान देवी देवल प्रकट हुई और पाबूजी से बोली, जिंधर्व तुम्हारी गाय चुराकर ले जा रहा है। गाय की रक्षा के लिए पाबूजी विवाह बीच में ही छोड़कर चले गए। जिंधर्व और पाबूजी में घमासान युद्ध हुआ। पाबूजी विजयी हुए लेकिन अपनी सौतेली बहन का पति होने के कारण उन्होंने जिंधर्व के प्राण बख्श दिए। 

जिंधर्व की प्रवृत्ति अलग किस्म की थी। वह पाबूजी को मारना चाहता था। उसने तलवार निकाली और पाबूजी पर प्रहार करना चाहा कि एक अद्भुत चमत्कार हुआ। पाबूजी अपनी घोड़ी पर सवार होकर अपने प्रभु श्रीराम के पास चले गए। बाद में जिंधर्व को अपनी दुष्टता का दंड मिला और बुरो के पुत्र रूपनाथ ने उसका वध किया। 

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