Tuesday, April 14, 2015

भक्ति बनाम तर्क

भक्ति बनाम तर्कस्पीकिंग ट्री बौद्ध ग्रंथों के अनुसार आत्मज्ञान के अंतिम उद्देश्य के लिए दो दृष्टिकोण हैं। एक मार्ग भक्ति का है और दूसरा तर्कज्ञान का। इन दो मार्गों में से भक्ति अर्थात श्रद्धा का मार्ग एक औसत समय इंसान के लिए सही है। भक्ति का अर्थ किसी वस्तु या उद्देश्य के लिए अप्रभावित सकारात्मक ध्यान से संबंधित है। विशेषताओं के आधार पर भक्ति को तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है। पहलाशांति के साथभक्ति करना है। दूसराविश्वास के साथभक्ति करनाहैऔरतीसराप्रेरणा के साथभक्ति करनाहै।      बुद्ध के शरीर, भाषण और मस्तिष्क पर विचार करें। बुद्ध के संदर्भ में हमारे मानसिक चित्रण के साथ इन्हें समझने का प्रयास करें। शांतिसे भराउनका शरीर, सत्य वचन बोलती उनके आवाज़ कीध्वनि, औरदयालुता से परिपूर्ण औरसब जानने वाला उनका कोमल मन। बुद्धकीइस तरह की धारणाशांति के साथभक्तिहै। भाषणकी ओर ध्यानदेना आत्मविश्वास के साथ भक्ति है औरध्यानके साथभक्तिप्रेरणाके साथभक्तिहै। जब हमबुद्धकीएकसुंदरमूर्तिकी कल्पनाकरते हैं या उसे देखते हैं, उदाहरणके लिए, गुप्त कालकी उनकी छवि में न सिर्फ हम उनके चेहरे पर शांति को महसूस कर सकते हैं बल्कि उनकी मूर्ति या तस्वीर को देखकर ऐसा लगता है कि बुद्ध हमसे बड़ी दयालुता से बातें कर रहे हैं।हमें अपने आस-पास सादगी और शांति का अनुभव होता है। मेरी समझ के अनुसार, फाइन आर्ट का यही उद्देश्य होना चाहिए। भक्ति के ये तीन प्रकार कुछ अन्य मौकों पर भिन्न प्रकारों से बताए गए हैं। इसे हम बुद्ध के द्वारा बताई गई त्रिमूर्ति की सहायता से समझ सकते हैं : बुद्ध की ओर शांति के साथ भक्ति रखना, धर्म की ओर आत्मविश्वास के साथ भक्ति रखना और संघ की ओर प्रेरणा से भक्ति रखना। भक्ति के इन तीन प्रकारों की व्याख्या दूसरे प्रकार की तुलना में पहले प्रकार में अधिक दार्शनिक रूप से की गई है।कोई व्यक्ति उस शांत वातावरण को महसूस करता है जिसमें बुद्ध बहुत से प्राणियों को लाभ पहुँचाने के लिए अवतरित होते हैं और बुद्ध का मुख्य कार्य प्राणियों को वह मार्ग दिखाना है जो उन्होंने खोजा है। इंसान को यह भी पता चलता है कि धर्म ही आत्मज्ञान का एकमात्र मार्ग है। आपके आध्यात्मिक मित्र आपके प्रेरणा के स्रोत हैं। भले ही आपको आत्मज्ञान का सही मार्ग मिल जाए लेकिन बिना किसी आदर्श प्रेरणास्रोत के, अनुभव के साथ इस मार्ग पर चलना कठिन होता है। कभी-कभी बौद्ध धर्म में दार्शनिक मार्ग के स्थान पर भक्ति मार्ग अपनाने पर भी जोर दिया जाता है। किसी भी इंसान की आस्था भक्ति और दर्शन के मार्ग के बीच बदलती रहती है। कहते हैं कि दार्शनिक दृष्टिकोण विद्वानों और भक्ति मार्ग औसत बुद्धि के इंसानों के लिए होता है। लेकिन यह तो अतिश्योक्ति हो गई क्योंकि यह बात हर इंसान पर लागू नहीं होती है। प्रत्येक आध्यात्मिक इंसान दार्शनिक नहीं हो सकता है। इसलिए भक्ति की भूमिका की प्रशंसा करना आवश्यक है।महायना बुद्ध सूत्र कहता है कि भक्ति सभी आध्यात्मिक गुणों का स्थान ले लेती है क्योंकि यह भक्ति ही है जो रक्षा करती है और बाद में सभी आध्यात्मिक गुणों का विकास होता है। प्रत्येक इंसान को जीवित रहने और जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं के लिए थोड़े से आत्मविश्वास और कई स्रोतों से ढेर सारी प्रेरणा की आवश्यकता होती है। भक्ति करने के कई मार्ग हैं। एक व्यावहारिक तरीका नाम मंत्रों का जाप करना है। नाम मंत्र में किसी एक नाम को शांतिपूर्ण तरीके से संबोधित कर कई बार दोहराया जाता है। इससे उसमें ध्यान लगता है और भक्ति का पहला मार्ग बनता है

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