Wednesday, April 15, 2015

मृत्यु के बाद वापस जीवित




मृत्यु के बाद वापस जीवित
जीवन का सबसे बड़ा और अटल सत्य है मृत्यु। कोई चाहे कितना ही ताकतवर क्यों ना हो, खुद को शक्तिशाली क्यों ना मानता हो, सच यही है कि जन्म लेने के साथ ही उसकी मौत का समय भी तय हो जाता है। मौत का डर इंसान को भयभीत तो करता है लेकिन हकीकत यही है कि मृत्यु का अनुभव व्यक्ति को जीवन की सच्चाई बता जाता है।
आपने मृत्युपूर्व आभासों के विषय में जरूर सुना होगा। हमने पहले आपको इसके विषय में बताया था। आज हम आपको कुछ ऐसे आभासों या अनुभवों के बारे में बताने जा रहे हैं जो मृत्यु से तुरंत पहले महसूस किए जाते हैं। जब इंसान का मस्तिष्क यह अनुमान लगा लेता है कि अब वह कुछ ही पलों का मेहमान है तो वह कुछ ऐसी उधेड़बुन में फंस जाता है जो उसने पहले कभी अनुभव नहीं की थी।
हर धर्म और समाजों में विभिन्न प्रकार के आभासों के बारे में उल्लेख किया गया है। धर्म से जुड़े होने के कारण बहुत से लोग यह मान सकते हैं कि मृत्युपूर्वाभासों जैसा कुछ नहीं होता। लेकिन जब विज्ञान स्वयं इस बात पर मुहर लगा देता है कि वाकई मरने से चंद मिनट पहले या मृत्यु हो जाने के चंद पलों बाद तक इंसान कुछ सोचता रहता है, तो वाकई यह बात एक तथ्य के तौर पर स्वीकृत हो जाती है।
वैज्ञानिकों द्वारा संपन्न सर्वेक्षणों के अनुसार मृत्यु के समीप पहुंचकर जो अनुभव होते हैं वे एक व्यक्ति का भौतिक दुनिया से जुड़ाव तो कम करते ही हैं साथ ही उसे उस रास्ते पर चलने के लिए भी प्रेरित करते हैं जो आत्मा को गंतव्य स्थान तक पहुंचाता है।
मनुष्य अपने शरीर के साथ-साथ अपनी आत्मा और ज़हन के मरने का भी अनुभव करता है। यह अनुभव किस तरह के होते हैं इसका उल्लेख हर धर्म में विभिन्न प्रकार से किया गया है।
कई बार ऐसी घटनाएं घटित होती हैं जब मौत के मुंह में पहुंचने के बाद व्यक्ति को जीवनदान मिल जाता है। आपने ऐसे भी कई किस्से सुने होंगे जब अंतिम संस्कार के समय ही व्यक्ति दोबारा जीवित हो उठता है। इन्हीं लोगों के साक्षात्कार के आधार पर प्राप्त परिणामों को वैज्ञानिकों ने अपने शोध की स्थापनाएं बनाया है।
सबसे पहले एक ऐसी महिला का उदाहरण, जिसकी पास की नजर बहुत कमजोर थी। अमेरिका की रहने वाली यह महिला वेंटिलेटर पर अपनी अंतिम सांसें ले रही थी। कुछ देर में उसने महसूस किया कि वह नजरें कमजोर होने के बावजूद अपने पीछे रखी मशीन पर लिखे अंक देख पा रही है। इतना ही नहीं, उसने खुद को छत की ओर उड़ता हुआ पाया। उसे वहां लगी लाइट पर गंदगी दिखाई दी। कुछ देर बाद उसकी आत्मा ने फिर से शरीर में प्रवेश कर लिया। डॉक्टरों के अनुसार वह किसी भी क्षण मर सकती थी लेकिन मृत्यु के समीप पहुंचकर वह स्त्री वापस आ गई।
ठीक होने के पश्चात जब उसे वेंटिलेटर से हटाया गया तब उसने मशीन के अंक पढ़े और लाइट पर जमा गंदगी भी देखी। साइंस में इस तरह के अनुभवों को आउट ऑफ बॉडी एक्सपीरियंस कहा जाता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार व्यक्ति जिस वातावरण में पला-बढ़ा है, उसका धर्म और धार्मिक मान्यताएं, उसके मौत के निकट पहुंचकर होने वाले अनुभवों को बयां करते है। एक वयस्क जब नीयर डेथ एक्सपीरियंस का अनुभव करता है तो इस अनुभव में उसका मौत का डर, सामाजिक और धार्मिक वातावरण बहुत मायने रखता है।
लेकिन जब एक छोटा बच्चा इन अनुभवों से गुजरता है तो उसे कैसा महसूस होता है, क्योंकि उसे ना तो मौत का अर्थ पता होता है और ना ही उसे किसी प्रकार से धर्म का कोई जुड़ाव होता है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि पांच से सात साल तक के बच्चे मृत्यु को नहीं समझते और ना ही उन्हें पूर्वजन्म की अवधारणा से कुछ लेना-देना होता है इसलिए उनके भीतर किसी प्रकार का भय नहीं होता। उन्हें भी कुछ ऐसे ही अनुभव होते हैं जो किसी वयस्क को हो सकते हैं।
वर्ष 1987 में हुई एक रिसर्च के अनुसार जब व्यक्ति मौत के निकट पहुंच जाता है तो वह जीवन को और बेहतर ढंग से समझने लगता है। वह धर्म-कर्म में दिलचस्पी लेने के साथ-साथ प्रकृति की भी सराहना करने लगता है। अपने सगे संबंधियों के प्रति उसका जुड़ाव बढ़ जाता है। ये सब होने के साथ-साथ उसका मौत से भय भी समाप्त होने लगता है।
हर धर्म में आत्मा के दो गंतव्य स्थानों का जिक्र किया गया है, एक नर्क और दूसरा स्वर्ग। ऐसा कहा जाता है कि जीवन में अच्छे कर्म करने वाले लोगों की आत्माएं स्वर्ग की ओर प्रस्थान करती हैं वहीं बुरे कर्म करने वाली आत्माएं नर्क जाती हैं।
व्यक्ति बहुत अच्छे से जानता है कि जीवनभर उसके कर्म अच्छे थे या बुरे। शायद उससे बेहतर कोई और यह बात जान भी नहीं सकता, इसलिए जब मौत उसके निकट होती है तब उसकी आत्मा अपने कर्मों के आधार पर ही स्वर्ग या नर्क जाने की यात्र शुरू कर देती है।
शोधकर्ताओं के अनुसार ईसाई, इस्लाम, हिन्दू, बौद्ध आदि सभी धर्मों में मृत्यु से पूर्व होने वाले अनुभवों का जिक्र है। उनका कहना है कि जब भी व्यक्ति नीयर डेथ एक्सपीरियंस की बात कहता है तो यह स्पष्ट है कि वह मौत को मात देकर आया एक दर्शक है, जिसने मौत को करीब से देखा है।
आस्तिकों और नास्तिकों के बीच बंटी इस दुनिया में जहां कुछ ईश्वर को सत्य मानते हैं वहीं नास्तिक ईश्वर के अस्तित्व पर कतई विश्वास नहीं करते। वे लोग जो ईश्वर को सच कहते हैं उनके लिए पूर्वजन्म भी एक सच है और साथ ही इससे जुड़े मृत्यु पूर्व आभास भी। लेकिन जिनके लिए ना ईश्वर कुछ है, ना जन्मों का फेर सच है, वे नीयर डेथ एक्सपीरियंस को किस तरह समझते हैं?
कुछ नास्तिक व्यक्तियों के साथ हुए साक्षात्कार के बाद ये बात सामने आई है कि किसी प्रकार का आध्यात्मिक झुकाव ना होने के बावजूद उन्हें भी आस्तिकों की ही तरह अनुभव होते हैं। वे भी जीवन को समझकर मौत के डर से मुक्त हो जाते हैं।
हां, कुछ नास्तिकों ने यह भी कहा है कि मृत्यु के पास पहुंचकर और वहां से वापस आने के बीच उन्हें किसी प्रकार का कोई अनुभव नहीं हुआ।
मौरो के अनुसार हिंदुओं में अजीब मान्यता है। वे स्वर्ग को एक विशाल नौकरशाही के तौर पर देखते हैं। भैंसे को कर्मों का हिसाब रखने वाले मृत्यु देव यमराज की सवारी माना जाता है इसलिए हिन्दू धर्म से जुड़े ऐसे लोग जिन्होंने मौत को बहुत नजदीकी से देखा है, का कहना है कि वह एक भैंसे के ऊपर बैठकर अपनी अंतिम यात्रा कर रहे थे।
बौद्ध धर्म से जुड़े लोग, जिन्होंने नीयर डेथ एक्सपीरियंस किया है उनके अनुसार उनकी अंतिम यात्रा काले पहाड़ों, गहरे समुद्र और आसपास रंगीन फूलों के रास्ते से गुजरी। उन्होंने इस दौरान महात्मा बुद्ध को अपने साथ देखा। वहीं हिन्दू धर्म के लोगों ने रास्ता तो यही बताया लेकिन उन्होंने बुद्ध को नहीं बल्कि कृष्ण को देखा था।
उपरोक्त अध्ययनों और जीवित व्यक्तियों के मृत्यु के निकट होने जैसे आभास को समझने के बाद यह कहा जा सकता है कि जीवित अवस्था में आपके विचार, आपके विश्वास, मरने के बाद आपकी यात्रा को बहुत प्रभावित करते हैं और इन सभी में धर्म भी एक बड़ा रोल निभाता है।

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