Saturday, April 11, 2015

जिंदगी से रू-ब-रू

करीब सौ साल पहले की बात है। एक आदमी सुबह सोकर उठा। उसने अखबार उठाया और रोज के मुताबिक खबरों में झांकने लगा। अचानक एक जगह वह चौंक उठा और उसने आंखे मसलकर दोबारा देखा। एक दम ठीक छपा था।
स्मृति शेष कॉलम में उसे श्रद्धांजलि दी गई थी। खबर गलती से प्रकाशित थी, पर थी। उसे बहुत धक्का लगा लेकिन कुछ देर तक वह सोचता रहा। कुछ वक्त बीतने पर वह सामान्य हुआ तो उसने विचार किया कि देखना चाहिए कि लोग मेरे बारे में क्या कहते हैं।
यह सोचकर उसने अपने पर छपे सारे संदेश पढ़ना शुरू किए। उसकी स्मृति में छपे लेख का शीर्षक था- 'डायनामाइट किंग डाइज'। इस लेख में आगे लिखा गया था कि यह व्यक्ति मौत के सौदागर के तौर पर भी जाना जाएगा।
यह पढ़कर वह व्यथित हो गया और उसने खुद से पूछा कि क्या वह यही पहचान छोड़कर जाना चाहता है। भीतर से आवाज आई कि उसे अपनी अच्छी छवि बनाने के लिए काम करना चाहिए। यहां से उसने शांति के लिए काम करना शुरू किया। उसका नाम था अल्फ्रेड नोबेल। नोबेल शांति पुरस्कार उन्हीं से स्थापित है।

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