Saturday, April 11, 2015

सदा सुखदायी

भगवान बुद्ध पाटलिपुत्र में प्रवचन कर रहे थे। लोग मंत्रमुग्ध थे। प्रवचन के बाद बुद्ध आंखे बंद किए बैठे थे। स्वामी आनंद ने जिज्ञासा व्यक्त की, तथागत, आपके सामने बैठे लोगों में सबसे सुखी कौन है?

तथागत बोले कि सबसे पीछे जो सीधा-साधा या कहें फटेहाल सा ग्रामीण आंखें बंद किए बैठा है, वह सबसे ज्यादा सुखी है।

यह सुनकर सबको आश्चर्य हुआ। बुद्ध ने कहा, चलो, मेरे पीछे-पीछे। मैं तुम्हें इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देता हूं। वह एक-एक करके सबके पास पहुंचे।

उन्होंने सभी से पूछा कि तुम्हें क्या चाहिए? किसी ने कहा कि मुझे पुत्र चाहिए, तो किसी ने उन्हें धन चाहिए। तब वह सबसे पीछे बैठे ग्रामीण के पास पहुंचे। उससे भी यह प्रश्न पूछा तो उसका कहना था कि, मैं पूर्ण रूप से संतुष्ठ है। मुझे कुछ नहीं चाहिए। मेरे पास जो है, उसी में संतोष रहे । इस तरह सभी तथागत की ओर देखने लगे।

संक्षेप में

असली सुखी व्यक्ति इस दुनिया में वही है। जो संतोषी है। इस लिए जितना आपके पास धन है उसी में संतोष करते हैं तो सदा सुखी रहेंगे।


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