Monday, April 13, 2015

शीतलाष्टमी

बहुत प्राचीन समय की बात है। भारत के किसी गांव में एक बुढ़िया माई रहती थी। वह हर शीतलाष्टमी के दिन शीतला माता को ठंडे पकवानों का भोग लगाती थी। भोग लगाने के बाद ही वह प्रसाद ग्रहण करती थी। गांव में और कोई व्यक्ति शीतला माता का पूजन नहीं करता था। 

एक दिन गांव में आग लग गई। काफी देर बाद जब आग शांत हुई तो लोगों ने देखा, सबके घर जल गए लेकिन बुढ़िया माई का घर सुरक्षित है। यह देखकर सब लोग उसके घर गए और पूछने लगे, माई ये चमत्कार कैसे हुआ? सबके घर जल गए लेकिन तुम्हारा घर सुरक्षित कैसे बच गया?

बुढ़िया माई बोली, मैं बास्योड़ा के दिन शीतला माता को ठंडे पकवानों का भोग लगाती हूं और उसके बाद ही भोजन ग्रहण करती हूं। माता के प्रताप से ही मेरा घर सुरक्षित बच गया। 

गांव के लोग शीतला माता की यह अद्भुत कृपा देखकर चकित रह गए। बुढ़िया माई ने उन्हें बताया कि हर साल शीतलाष्टमी के दिन मां शीतला का विधिवत पूजन करना चाहिए, उन्हें ठंडे पकवानों का भोग लगाना चाहिए और पूजन के बाद प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।

पूरी बात सुनकर लोगों ने भी निश्चय किया कि वे हर शीतलाष्टमी पर मां शीतला का पूजन करेंगे, उन्हें ठंडे पकवानों का भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करेंगे। 

कथा का मर्म 
इस कथा का मर्म भी बहुत गहरा है। भारत की जलवायु और खासतौर से राजस्थान की जलवायु गर्म है। गर्मी कई रोग पैदा करती है। शीतला माई शीतलता की देवी हैं। 

कथा का यह संदेश है कि शीतला माई का पूजन करने से तन, मन और जीवन में शीतलता आती है, मनुष्य गर्मी, द्वेष, विकार और तनावों से दूर रहता है। माता के हाथ में झाड़ू भी है जो स्वच्छता और सफाई का संदेश देती है।

गर्म मौसम के अनुसार स्वयं की दिनचर्या व खानपान में बदलाव करने से ही जीवन स्वस्थ रह सकता है। इस प्रकार शीतला माई ठंडे पकवानों के जरिए सद्बुद्धि, स्वास्थ्य, सजगता, स्वच्छता और पर्यावरण का संदेश देने वाली देवी भी हैं

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