Saturday, April 11, 2015

मन पर संयम

कन्फ्यूशियस बहुत बड़े साधक थे। एक बार एक साधक ने उनसे पूछा, मैं मन पर संयम कैसे रख सकता हूं ? तब कन्फ्यूशियस बोले, मैं तुम्हें एक छोटा सा सूत्र देता हूं। क्या तुम कानों से सुनते हो ?
साधक ने कहा, हां मैं तो कानों से ही सुनता हूं। कन्फ्यूशियस ने असहमति जताई और कहा कि मैं नहीं मान सकता कि तुम कानों से सुनते हो। तुम मन से भी सुनते हो और उसमें लिप्त होकर अशांत हो जाते हो।
इसलिए आज से केवल कानों से सुनना प्रारंभ करो। मन से सुनना बिल्कुल बंद कर दो। इसी तरह तुम सिर्फ आंखों से देखते हो और जीभ से चखते हो, यह मैं नहीं मान सकता। तुम मन से भी चखते हो। आज से केवल आंखों से देखना और जीभ से चखना प्रारंभ करो। मन से देखना और चखना बंद करो।
मन पर अपने आप संयम हो जाएगा। यह रूपांतरण एक सशक्त सूत्र है कि केवल कान से सुनो, आंखों से देखो और जीभ से चखो। उन्हें मन से मत जोड़ो। मन पर संयम की यह पहली सीढ़ी साबित होगी।

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