हाय कष्ट! हाय दुःख!------------------------राजा जनक ने देखा कि सत्संग के बहोत लाभ है.. सत्संग के बिना आत्मा का प्रकाश नही मिलता.. ज्ञान नही है तो आदमी कितना भी राजा महाराज हो तो भी उसका दुःख नही मिटतातो सत्संग का महत्त्व जानो..सत्संगति के द्वारा ही जनम मरण का अंत होता है…..मुक्ति कि अनुभूति इसी सत्संग के द्वारा होती है..सत्संग का महत्त्व है इसका पुण्य महा कल्याणकारी है…सत्संग कि महिमा अपरम्पार है….राजा जनक को सत्संग से लाभ हुआ और भगवत प्राप्ति हुयी तो उन्होने पूरी प्रजा को भी सत्संग से लाभान्वितकरने के लिए सत्संग का आयोजन किया..अष्टावक्र महाराज सत्संग मंच पे आये इतने में एक भयंकर काला सांप आया…….सभा मे आगे आगे साप आये तो लोग जरा दहेल गए..त्रिकाल ज्ञानी अष्टावक्र महाराज ने सांप को देखा..समझ गए की ये सांप साधारण नही है..मिथिला का भूतपूर्व राजा अज्ज है..अष्टावक्र महाराज ने सभा के लोगो को बोला कि ,सभा मे ये सांप तुम्हे काटने को नही आया ..ये इसी मिथिला नगरी का राजा अज्ज है….सत्संग सुनके अपने पापो को नष्ट करेगा…सत्संग के पूर्णाहुति कि बेला आएगी तो उसको दिव्य शरीर मिलेगा..इसी के मुंह से आप इसकी आप बीती सुनोगे ऐसी मैं व्यवस्था करूँगा..सत्संग चलते चलते पूर्णाहुति कि बेला आई…जब पूर्णाहुति कि बेला हुयी तो जो सांप कुण्डी मारकर बैठता था और सत्संग सुनता था तो वह बार बार अपनी फण उठाए और पटके.फिर उठे फण सिर पटके..ऐसा ५ -२५ बार फटके लगने से कंकर पत्थर लगा …जब खून निकला तो ऊसकी जिव कि ज्योति बाहर निकली औरदेखते देखते ऊसमे से एक दिव्यपुरुष देवता के रूप मी प्रकट हो गए ..लोग देखते रहे गए…वह देव पुरुष आगे बढ़ा…ऊसने राजा जनक का माथा सुंघा..अष्टावक्र को प्रणाम किया..अष्टावक्र महाराज ने कहा कि “मैं तो तुझे जानता हूँ ,लेकिन ये सत्संगियो को तुम अपनी आप बीती सुनाये..”तब वो देवपुरुष राजा अज्ज कहने लगे कि,मैं इसी मिथिला नगरी का राजा जनक से ६ पीढ़ी पहले का राजा अज्ज हूँ किसी कारन वश मुझे मरने के बाद ऐसी तुच्छ योनिया मिली…यमराज के पास मृत्यु के बाद गया तो यमराज ने कहा मुझे की १००० वर्ष साप और अजगर कि योनी मी तुम्हे दुःख देखना पड़ेगा….”मैंने यमराज से हाथ जोड़कर कहा कि “हे यमराज, मुझ पर कृपा करो…१००० वर्ष ऐसी योनियों में ?…..तो यमराज ने कहा, “अगर कोई आप के कुल मे–कोई कुलदीपक,बेटा,बेटे का बेटा या जो आप के वंश मे जन्मा हैवह अगर सत्संग करवाए या सत्संग के आयोजन में भागीदार हो तो तुम्हे अपने कर्मो से छुटकारा मिल सकता है…”तो राजा अज्ज ने कहा कि,“हे संयम पूरी के देवता!…मुझ पर कृपा करे कि ऐसा आयोजन हो तो मुझे वहा उपस्थित होने का लाभ मिले..जो अपने कुल की संतान की द्वारा सत्संग हो रहा हो तोमैं वह सत्संग का माहोल नीहार के अपनी आँखे पवित्र करू..सत्संग के वचन सुनकर अपने जनम जन्मांतर के पाप-ताप निवृत्त करके ज्ञान का प्रकाश पाऊं ..हे सय्याम पूरी के देवता !आप अगर कृपा करे तो ये वरदान दे सकते है.. यमराज प्रसन्न होकर बोले कि,“बाढम बाढम !!(बढिया बढिया) साधो साधो!तुम्हारी मांग..सत्संग कि मांग..सीधी साधी है..एवं अस्तु!”फिर मैं चन्द्रमा के किरणों के द्वारा गिराया गया ..कई तुच्छ योनियों मे भटकते भटकते अजगर बना… रात को पेट भरने को निकलता… मेंढक या ऐसे ही जिव जानवर का शिकार करता..शिकार नही मिले तो मरा हुआ प्राणी जिव जानवर खाता … कभी वह भी न मिलता तो भूके पेट लौटता..तो कभी पेड़ पर गोलमटोल चढ़कर पक्षियो के घोसलो मे से ऊनके अंडे या बच्चे को चबा लेता…एक पूनम के रात मैं वह शिकार मिलने मे भी विफल रहा..पक्षी मिलकर किल्होल करने लगे..प्रभात काल मे अपने बिल कि तरफ लौट रहा था ,तो चांदनी के कारन लोग जंगल मी लकडियां और घांस लेने के लिए घसिरिये जल्दी आ गए थे..उनकी मुझ पर नज़र पड़ी..तो मुझे देखकर लोगो ने शोर किया “पकडो पकडो मारो मारो”.. मैं जल्दी जल्दी अपने बिल में घुसने लगा आधे से जादा घुस गया तो लोगो ने पथ्थर से,लकडी से मेरी पुच्छ पर प्रहार किया….घसीटते घसीटते कैसे भी मैं बिल के अन्दर घुसा…लहूलुहान होकर पुच्छ घसीटता अन्दर गया सोचा कि कुछ आराम पाउँगा..लेकिन भाइयो जिन्होंने हरि में सत्संग के द्वारा आराम नही पाया ,वह राज पद से च्युँत होकर क्या आराम पाएंगे..मेरे खून कि गंध जंगल के किडियो को आई और चिंटियों की,किडियोकी कतार लग गयी..किडियो ने मेरी पुच्छ को नोच डाला ….किडियो से जान छुडा नही सकता था..कहा तो “राजाधिराज महाराज अन्नदाता पधार रहे है..”और कहा छोटी सी किडि से भी जान नही छुडा सकते….सत्संग के बिना तो राजा महाराज की भी दुर्गति होती है.. ..इसी लिए मनुष्य को बडे से बडे पद पर आरूढ़ हो कर अथवा बडे बल पर गर्व अभिमान नही करना चाहि
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