हिंदू धर्म दुनिया का सबसे पुराना धर्म माना जाता है। हिंदू धर्म में पवित्र कहानियों और ईश्वर का उल्लेख मिलता है। इन कहानियों में प्रेम, युद्ध आक्रमकता, आविष्कार, विध्वंस का समावेश रहता है। इन पौराणिक कथाओं में कई चरित्र होते हैं और उनके कई भूमिकाएं ऐतिहासिक हैं।
यह तमाम तथ्य पौराणिक कहानियों को जीवंत बनाते हैं। हिदू धर्म के पवित्र ऊँ शब्द में ईश्वर के एक लाख से भी अर्थ समाए हुए हैं। कुछ हिंदू अनुयायियों का मानना है कि मुस्लिम धर्म की पवित्र संख्य 786 ओम का ही एक रूप है। क्योंकि इन दो अलग-अलग धर्मों के पथ अलग हो सकते हैं, लेकिन हम सब एक है और हमारे ऊपर केवल एक ही सर्वशक्तिमान की छाया है। फर्क बस इतना है कि हमारी भाषा और रीती रिवाज बदल गए हैं।
इस्लाम धर्म में 786 का महत्व
मुस्लिम धर्म को मानने वाले और मिस्र के लोगों का मानना है कि 786 अंक बहुत पवित्र है। यह उनके लिए भाग्यशाली अंक है। दूसरे अर्थों में कहें, तो इस अंक को वह बहुत ज्यादा बेमिसाल मानते हैं। 786 अंक को सांकेतिक प्रतिनिधित्व के रूप में माना जाता है। मुस्लिम धर्म के लोगों का मानना है कि इस अंक की उत्पत्ति इस्लाम धर्म में हुई है।
इस्लाम धर्म में 786 की उत्पत्ति
हालांकि, इस्लाम में पवित्र अंक 786 की उत्पत्ति और महत्व का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। इस्लाम में 'बिस्मिल्ला' (अल्लाह के नाम को) के स्थान पर इस अंक का उपयोग करने की प्रवृति है। इस अंक का प्रचलन मोहम्मद पैगंबर के समय से नहीं है।
कहते हैं यदि बिस्मिल्ला अल रहमान अल रहीम को अरबी या उर्दू भाषा में लिखा जाए और उन शब्दों को जोड़ा जाए तो उनका योग 786 आता है। इसलिए लोगों को अल्लाह के नाम का संबोधन देने के लिए एक विकल्प के रूप में 786 का पवित्र अंक उपयोग करने की सलाह दी गई। इस्लाम धर्म विज्ञान को नहीं मानता इसलिए कुछ मुस्लिम धर्म के अनुयाइयों की मानें, तो लोगों को अल्लाह की इबादत करने के लिए इस अंक को संलग्न किया गया।
786 और हिंदू धर्म में संबंध
सनातन धर्म के मुताबिक 786 का मतलब ऊँ होता है। राफेल पताई अपनी पुस्तक 'द जीविस माइंड' में बताते हैं तंत्र और गुलामी की दास्ता के बीच यह संसार रहता है। पवित्र कुरान की सभी अरबी प्रतियों पर अंकित रहस्यमय अंक 786 है। अरबी विद्वानों ने परमात्मा के रूप में इस विशेष अंक का चुनाव निर्धारित कर इसे ईश्वर के समान दर्जा दिया। अगर इस जादुई संख्या को संस्कृत में लिखा जाए तो ऊँ जादुई संख्या 786 दिखाई देगा।
श्रीकृष्ण और 786
सच्चिदानन्दघन परब्रम्ह परमात्मा पूर्णवतार में श्रीकृष्ण ने बांसूरी के सात छिद्रों से सात स्वरों के साथ हाथों की तीन-तीन अंगुलियों से यानी छ: अंगुलियों से बांसुरी बजाकर गांवों को मुग्ध कर दिया करते रहे। (7) सात छिद्रों और सात स्वरों वाली बांसुरी को देवकी के आठवें (8) पुत्र प्रिय श्रीकृष्ण ने अपनी (6) अंगुलियों से बजाकर समस्त चराचर को मंत्रमुग्ध कर दिया था। इस तरह श्रीकृष्ण और 786 अंक का महत्व जितना मुस्लिम धर्म में है, उतनी ही हिन्दू धर्म में भी है।
एकता का प्रतीक 786
अंक ज्योतिष के अनुसार 786 को परस्पर में जोड़ते है तो 7+8+6=21 होता है। 21 को भी परस्पर जोड़ा जाए तो 2+1=3 अंक हुआ, जो कि लगभग सभी धर्मों में अत्यंत शुभ एवं पवित्र अंक माना जाता है। तीन उच्च महाशक्ितयां ब्रह्मा, विष्णु और महेश। अल्लाह, पैगम्बर और नुमाइंदे की संख्या भी तीन तथा सारी सृष्टि के मूल में समाए प्रमुख गुण सत् रज व तम भी तीन ही हैं। अर्थात हिन्दू धर्म एवं मुस्लिम धर्म दोनों में ये दोनों धार्मिक प्रतीक मिलते जुलते हैं।
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