वसंत पंचमी से ही वसंत ऋतु का आरंभ माना जाता है। चारों ओर हरियाली और खुशहाली का वातावरण छाया रहता है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी ने सरस्वती जी की रचना की थी, इसलिए इस दिन सरस्वती जी की पूजा की जाती है।
पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और तब से भारत के कई हिस्सों में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो आज तक जारी है। वैसे वसंत पंचमी के दिन विष्णु पूजा का भी महत्व है।
मुग्ध करता वसंत
वसंत ऋतु प्राकृतिक सौंदर्य में निखार, मादकता का संगम है। प्राचीनकाल से ही वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम रहा है। इस मौसम में फूलों पर बहार आ जाती है, खेतों में सरसों का सोना चमकने लगता है, जौ और गेहूं की बालियां खिलने लगती हैं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाते हैं और हर तरफ रंग-बिरंगी तितलियां उड़ने लगती हैं।
माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी से ऋतुओं के राजा वसंत का आरंभ हो जाता है।
यह दिन नवीन ऋतु के आगमन का सूचक है। इसलिए इसे ऋतुराज वसंत के आगमन का प्रथम दिन माना जाता है। इसी समय से प्रकृति के सौंदर्य का निखार दिखने लगता है। वृक्षों के पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और उनमें नए-नए गुलाबी रंग के पल्लव मन को मुग्ध करते हैं।
रसिकजनों का प्रिय
ऋतुओं का राजा वसंत रसिकजनों का भी प्रिय रहा है। प्राचीनकाल से ही हमारे देश में वसंतोत्सव, जिसे कि मदनोत्सव के नाम से भी जाना जाता है, मनाने की परंपरा रही है। संस्कृत के प्राय: समस्त काव्यों, नाटकों, कथाओं में कहीं न कहीं वसंत ऋतु और वसंतोत्सव का वर्णन अवश्य मिलता है।
वसंत पंचमी से लेकर रंग पंचमी तक का समय वसंत की मादकता, होली की मस्ती और फाग का संगीत से सभी के मन को मचलने का मौका देते हैं। जहां टेसू (पलाश) और सेमल के लाल-लाल फूल, जिन्हें वसंत के श्रृंगार की उपमा दी गई है, सभी के मन में मादकता उत्पन्न करते हैं, वहीं होली की मस्ती और फाग का संगीत लोगों के मन को उमंग से भर देता है।
वसंतोत्सव की छटा
प्राचीनकाल में वसंतोत्सव का दिन कामदेव के पूजन का दिन होता था। भवभूति के श्मालती-माधव के अनुसार वसंतोत्सव मनाने के लिए विशेष मदनोत्सव बनाया जाता था जिसके केंद्र में कामदेव का मंदिर होता था। इसी मदनोत्सव में सभी स्त्री-पुरुष एकत्र होते, फूल चुनकर हार बनाते, एक-दूसरे पर अबीर-कुमकुम डालते और नृत्य संगीत आदि का आयोजन करते थे। बाद में वह सभी मंदिर जाकर कामदेव की पूजा करते थे।
सब कुछ नया
इस दिन से जो पुराना है वह सब झड़ जाता है। प्रकृति फिर से नया श्रृंगार करती है। टेसू के दिलों में फिर से अंगारे दहक उठते हैं। सरसों के फूल फिर से झूमकर किसान का गीत गाने लगते हैं।
कोयल की कुहू-कुहू की आवाज भंवरों के प्राणों को उद्वेलित करने लगती है। मादकता से युक्त वातावरण विशेष स्फूर्ति से गूंज उठता है और प्रकृति फिर से अंगड़ाइयां लेने लगती है।
इस समय गेहूं की बालियां भी पककर लहराने लगती हैं, जिन्हें देखकर किसानों का मन बहुत ही हर्षित होता है। चारों ओर सुहावना मौसम मन को प्रफुल्लता से भर देता है।
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