Saturday, April 11, 2015

वसंतोत्सव पर मां सरस्वती के साथ की जाती है लक्ष्मी पूजा

भारतीय ज्योतिषशास्त्र में वसंत पंचमी को अति शुभ मानते हुए, इसे स्वयंसिद्ध मुहूर्त घोषित किया गया है। यानी यह तिथि इतनी शुभ है कि इस दिन कोई भी काम बिना मुहूर्त देखे किया जा सकता है। इसी विशिष्टता के कारण यह त्योहार युगों से भारतीय जनमानस में अनपूछे मुहूर्त के रूप में प्रतिष्ठित है।
शादी, सगाई, तिलक, यज्ञोपवीत, मुंडन, गृहप्रवेश आदि सभी मांगलिक कार्य इस दिन उत्सवी रूप में संपन्न होते हैं। वस्तुत: वसंत पंचमी अपने भीतर दिव्य ऊर्जा का अक्षय भंडार समेटे हुए है। अत: इस दिन किया गया कोई भी धार्मिक अनुष्ठान या शादी-ब्याह सफल और अति शुभ फलदायी साबित होता है।
श्रीपंचमी भी है यह त्योहार
शास्त्रों में वसंत पंचमी को श्रीपंचमी भी कहा गया है। श्री का तात्पर्य है- समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी। तंत्रशास्त्र में माघ शुक्ल पंचमी अर्थात वसंत पंचमी को लक्ष्मी-उपासना हेतु अतिशुभ बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि विष्णुप्रिया लक्ष्मी बसंत पंचमी के दिन प्रसन्न-मुद्रा में होती है।
पूरे वर्ष में यही एक ऐसा दिन होता है, जब ये दोनों देवियां आपसी बैर भुलाकर लोक कल्याणार्थ एकचित्त होती हैं। यही वजह है कि वसंत पंचमी इन दोनों देवियों के मिलन का महापर्व बन गई है। अत: इस दिन दोनों के पूजन से विद्या के साथ सुख-समृद्धि की भी प्राप्ति होती है।
प्रचलित पौराणिक कथा
मां सरस्वती ज्ञान-विज्ञान, कला और संगीत की अधिष्ठात्री देवी हैं। कुछ धर्मग्रंथों में वसंत पंचमी को इनका आविर्भाव दिवस माना गया है। भगवती सरस्वती के प्राकट्य की तिथि होने के कारण वसंत पंचमी का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
इससे संबंधित कथा यह है कि सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने जब अपनी सृष्टि को मूक और नीरस देखा, तब उन्होंने मंत्र पढ़कर अपने कमंडल का जल पृथ्वी पर छिड़क दिया। इसके फलस्वरूप धरती पर सर्वत्र हरियाली छा गई।
हरे-भरे पेड़-पौधों से सुशोभित उस धरा पर एक परम तेजोमयी देवी प्रकट हो गई, जिनके हाथों में वीणा एवं पुस्तक थी। ब्रह्माजी ने उन्हें अपनी वीणा के माध्यम से सृष्टि की मूकता तथा पुस्तक द्वारा अज्ञान के अंधकार को दूर करने का कार्यभार सौंपा। तदनुसार देवी सरस्वती वाणी और विद्या की स्वामिनी बनकर सृष्टि के विकास में तत्पर हो गईं।
संगीतज्ञों की आराध्य देवी
इतिहास में प्रसिद्ध अनेक विद्वानों और संगीतज्ञों की आराध्य देवी सरस्वती ही थीं, जिनकी कृपा से वे विश्वविख्यात हुए। सरस्वती माता की आराधना से ही कवित्व, साहित्य-सृजन, संगीत में निपुणता तथा वाकपटुता एवं तर्कशक्ति प्राप्त होती है।
महर्षि वाल्मीकि को सरस्वती की अनुकंपा से ही आदिकवि बनने का गौरव प्राप्त हुआ। इनके अनुग्रह से ही महर्षि वाल्मीकि द्वारा संसार के सर्वप्रथम महाकाव्य रामायण की रचना हुई।
द्वापरयुग में जब महर्षि वेदव्यास ने पुराणों की रचना का संकल्प लिया, तब उन्होंने सरस्वती जी की आराधना की। ब्रह्मवैवर्त पुराण में लिखा है कि योगेश्वर श्रीकृष्ण ने सरस्वती जी को यह वरदान दिया था कि माघ-शुक्ल-पंचमी के दिन तथा विद्यारंभ करते समय देव-दानव, यक्ष-गंधर्व, नर-नारी सभी तुम्हारी पूजा करेंगे।
जगद्गुरु श्रीकृष्ण ने स्वयं भी सरस्वती जी की अर्चना की। इस प्रकार वसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा की शुरुआत हुई। सरस्वती देवी की ऐसी महिमा है कि इनकी पूजा से मंदबुद्धि भी प्रकांड विद्वान बन सकता है।
कालिदास इनके काली रूप की आराधना करके महाकवि बन गए। इसीलिए सरस्वती पूजा प्रत्येक विद्यार्थी के लिए शुभ है।
ये 12 अति शुभदायी नाम
सरस्वती के इन 12 नामों का उच्चारण अति शुभ फलदायी साबित होता है- 1. भारती 2. सरस्वती 3. शारदा 4. हंसवाहिनी 5. जगती 6. वागीश्वरी 7. कुमुदी 8. ब्रह्मचारिणी 9. बुद्धिदात्री 10. वरदायिनी 11. चंद्रकाति 12. भुवनेश्वरी।

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