Saturday, April 11, 2015

आत्महत्या एक अपराध

दुनिया क्या है? एक ऐसी जगह जहां अनगिनत देश हैं, उन देशों में लाखों-करोड़ो लोग बसे हैं और यह लोग एक ऐसी दौड़ में भाग रहे हैं जहां यह अपने प्रतियोगी से आगे ही रहना चाहते हैं। इस दुनिया में तरह-तरह के लोग रहते हैं, रोज नन्हीं किलकारियों के साथ कुछ दुनिया के नए मेहमान बन कर आते हैं तो कुछ एक दिन अलविदा कह कर चले जाते हैं। यह हमारे संसार का नियम है।
मैने अक्सर यह सुना है कि मौत को अपने सामने खड़ा देख लोग बेहद घबरा जाते हैं। एक छोटा बच्चा जब पहली बार किसी डरावने जीव को देख अपनी मां के आंचल में छिपने की कोशिश करता है, ठीक इसी तरह से इंसान भी मौत को देख बेचैन हो जाता है। लेकिन फिर भी मौत को नजरअंदाज़ भी तो नहीं किया जा सकता। यह सत्य है कि मृत्यु से डर लगता है, परंतु उनका क्या जो खुद मौत को गले लगाते हैं?
वह लोग जो खुद हिम्मत जुटाकर
अपनी मौत की तारीख तय करते हैं। जीवन का आखिरी चरण कब और किस दिन होगा, वह खुद इसका फैसला करते हैं? कौन हैं ये लोग? क्या इन्हें अपनी जिंदगी से प्यार नहीं? ये वो लोग हैं जो किसी ना किसी कारण से मरना चाहते हैं। जिनके लिए जीवन से ज्यादा सुखमय शायद मौत है। लेकिन निडर होकर मरने के बाद ये कहां जाते हैं?
हिन्दू मान्यता के
अनुसार इंसान के मरने के बाद यमराज उसे यमलोक लेकर जाते हैं। वहां उसके लिए दो द्वार मौजूद हैं - स्वर्ग और नर्क। उसके कर्मों का हिसाब लगाने के बाद ही यह निश्चित किया जाता है कि उसका आने वाला भाग्य स्वर्ग (जिसे अच्छे कर्म करने वाला भोगता है) होगा या नर्क (जो बुरे लोगों के लिए है) होगा। तो क्या आत्महत्या (सुसाइड) करने वालों के लिए भी यही नियम लागू होता है?
हिन्दू मान्यता के
अनुसार इंसान की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा को स्वर्ग और नर्क में जगह दी जाती है। ग्रंथों में विस्तार रूप से स्वर्ग एवं नर्क की तस्वीर भी परिभाषित की गई है। यह दोनों स्थान किस तरह के दिखते हैं, इनमें कौन रहता है और किस तरह से यहां आने वाले लोगों के साथ व्यवहार किया जाता है, इसका पूरा उल्लेख दिया गया है।
तोह पहले बात करते हे
स्वर्ग की। स्वर्ग एक ऐसी जगह है जहां उन लोगों को दाखिला मिलता है जिन्होंने अपने मानवीय जीवन में अच्छे कर्म किए हों। किसी को सताया ना हो, लोगों का भला किया हो और आखिरी सांस तक सबका अच्छा सोचा हो, उन्हें स्वर्ग में स्थान मिलता है। लेकिन देखने में कैसा है स्वर्ग?
तोह पहले बात करते हे जब मनुष्य अच्छे कर्म
करता है तभी उसे स्वर्ग हासिल होता है, तो इसीलिए स्वर्ग बेहद खूबसूरत जगह है। मान्यता है कि सम्पूर्ण पृथ्वी पर भी स्वर्ग लोक जैसी सुंदर जगह नहीं है। वहां इंसान के आराम के लिए हर चीज़ मौजूद है। साथ ही उनके मनोरंजन के लिए अप्सराएं भी होती हैं। परंतु इसके बिलकुल विपरीत है नर्क की दुनिया।
नर्क उन्हें मिलता हे
या यूं कहें कि उन्हें भोगना पड़ता है जिन्होंने ताउम्र बुरे कार्य किए। उनकी वजह से लोगों ने दुख झेले। यह वे लोग हैं जिन्होंने पृथ्वी लोक पर एक बुरी छवि वाला जीवन व्यतीत किया। इसीलिए उनके कर्मों के अनुसार उन्हें नर्क में पीड़ा ही हासिल होती है। परंतु हमारा सवाल है कि आखिरकार आत्महत्या करने वाले कहां जाते हैं?
यदि हिन्दू धार्मिक
ग्रंथों की बात करें तो अपने हाथों अपना जीवन समाप्त करना एक बहुत बड़ा अपराध है। जीवन एवं मृत्यु उस महान परमात्मा के हाथों होता है। लेकिन यदि मनुष्य अपने हठ से स्वयं ही जीवन-मृत्यु की बागडोर पकड़ना चाहे, तो भगवान भी उसे दंड ही देते हैं।
इसलिए आत्महत्या
करने वाला इंसान नर्क ही भोगता है। मान्यता है कि पृथ्वी पर जीवन हर किसी को प्रदान नहीं किया जाता। वर्षों की तपस्या के बाद किसी आत्मा को इंसान रूप में पृथ्वी पर आने का मौका मिलता है। नहीं तो बार-बार किसी ना किसी पशु एवं पक्षी, यहां तक कि कीड़े-मकोड़े के रूप में भी पृथ्वी का हिस्सा बनना पड़ता है।
लेकिन यह भगवान
की मर्जी है कि वे किसी रूह को इंसानी रूप में पृथ्वी पर भेजते हैं। उनका उस आत्मा को यह मौका देने का उद्देश्य होता है उसे आध्यात्म से जोड़ना। प्रभु चाहते हैं कि वह पृथ्वी लोक पर जाकर महान ग्रंथों को समझे, अच्छे कर्म करे और अपने जीवन से मुक्ति पाकर स्वर्ग लोक में शामिल हो जाए।
लेकिन जब इंसान भगवान
के विरुद्ध चलता है तो उसे सजा मिलती है। यही कारण है कि आत्महत्या करने वाले को नर्क हासिल होता है। माना गया है कि इस पूरे ब्रह्मांड में 14 प्रकार के स्थान हैं जहां मनुष्य रहता है। इनमें से 7 सकारात्मक स्थान हैं तथा बाकी 7 नकारात्मक स्थान हैं, जिन्हें नर्क भी कहा जाता है।
जब कोई मनुष्य अपना
शरीर छोड़ आत्मा रूप धारण कर लेता है तो उसे पृथ्वी के अलावा अन्य 13 स्थानों में से किसी एक स्थान पर भेजा जाता है। इस प्रकार से आत्महत्या करने वाले इंसान को 7 नर्क स्थान में से किसी एक नर्क की दुनिया में भेजा जाता है। उस इंसान को यहां कम से कम 60,000 पृथ्वी के वर्ष समान वर्ष व्यतीत करने होते हैं।
मान्यता है की नर्क
का यह स्थान ऐसा है जहां रोशनी की एक किरण भी नहीं होती। यह एक ऐसा स्थान है जो किसी शिकारी को परिंदे में बांधकर रखने के योग्य लगता है। यहां दुख, पीड़ा और अंधकार के अलावा इंसान को कुछ भी हासिल नहीं होता है।
आत्महत्या का फैसला
लेने वाला इंसान ना मरने से पहले सुख ले पाता है और ना ही मरने के बाद सुख रहने के लायक रहता है। अपनी जिंदगी के दौरान उसने अनगिनत दुख झेले। यह जरूरी नहीं कि आत्महत्या करने वाला इंसान बुरा था इसीलिए उसे नर्क हासिल हुआ।
बल्कि उनसे जो भी
किया मजबूरी में किया। उसके लिए जीवित आवस्था में दुख झेलने से ज्यादा आसान था मृत्यु को स्वीकार कर लेना। परंतु मृत्यु के बाद उसे क्या हासिल होगा यह वह नहीं जानता।
कानूनी रूप से भी आत्महत्या एक अपराध है लेकिन हमारा धर्म भी हमें इसकी इजाज़त नहीं देता। आत्महत्या करने वाला भगवान की बनाई सांसारिक नीति के विरुद्ध जब कोई कदम उठाता तो भगवान भी उसे सज़ा देने के लिए तैयार रहते हैं।

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