भगवान श्रीगणेश को वक्रतुण्ड कहा गया है। वह इसलिए क्योंकि इनके एक अवतार का नाम भी वक्रतुण्ड है। दरअसल मत्सरासुर का वध करने के लिए उन्होंने यह अवतार लिया था। इस रूप में गणेशजी का वाहन सिंह है। मुद्गलपुराण के अनुसार भगवान गणेश के अनेकों अवतार हैं, जिनमें आठ अवतार प्रमुख हैं। पहला अवतार भगवान वक्रतुण्ड का है।
मान्यता है कि देवराज इंद्र के प्रमाद से मत्सरासुर का जन्म हुआ था। उसने दैत्यगुरू शुक्राचार्य से भगवान शिव के मंत्र 'ऊं नमः शिवाय' की दीक्षा प्राप्त कर भगवान शंकरजी की कठोर तपस्या की थी। इस तरह भगवान भोलेनाथ ने उसे अभय का वरदान दिया था।
वरदान पाकर दैत्य मत्सरासुर जब घर लौटा तब शुक्रराचार्य ने उसे दैत्यों का राजा बना दिया। इस समय तक उन्होंने एक शक्तिशाली सेना एकत्रित कर ली थी। इस तरह उन्होंने पृथ्वी के राजाओं को जीतने का अभियान शुरू कर दिया था।
इनमें से कुछ राजा पराजित हो गए और कुछ राजा डरकर भाग गए। उसने वरुण, कुबेर, यम आदि समस्त देवताओं को भी युद्ध में हरा दिया था।
इस तरह मत्सरासुर ने इंद्रलोक पर भी अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था। असुरों से हारकर सभी देवता चिंतित थे वह पहले ब्रह्मा और विष्णु जी को लेकर भोलेनाथ की शरण में गए। मत्सरासुर के अत्याचारों की कहानी सुनाते हुए देवता बोले कि उसने सभी धार्मिक लोगों का जीवन दुखमय बना दिया है।
यह सुनकर भगवान शंकरजी नाराज हो गए। मत्सरासुर ने इसी बीच कैलाशधाम पर भी आक्रमण कर दिया। भगवान शिव भी उसके समक्ष नहीं टिक पाए अब मत्सरासुर कैलाश का स्वामी बनकर रहने लगा।
देवताओं को मत्सरासुर के विनाश का कोई कारण नहीं सूझ रहा था। उसी समय भगवान दत्तात्रेय पहुंचे। उन्होंने देवताओं को वक्रतुण्ड के एकाक्षरी मंत्र (गं) का उपदेश दिया। सभी देवता इसी मंत्र का जाप करने लगे।
उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान वक्रतुण्ड प्रकट हुए। देवताओं ने अपनी समस्या से उन्हें अवगत कराया। उन्होंने देवताओं को सुरक्षा का वचन दिया।
भगवान वक्रतुण्ड ने अपने असंख्य गणों के साथ मत्सरासुर के नगर को चारों तरफ से घेर लिया। भयंकर युद्ध हुआ। पांच दिनों तक लगातार युद्ध चलता रहा। मत्सरासुर के सुंदरप्रिय एवं विषयप्राप्ति नामक दो पुत्र थे। वक्रतुण्ड के गणों ने मार दिया। पुत्र वध से व्याकुल मत्सरासुर रणभूमि में उपस्थित हुआ। वहां उसने भगवान वक्रतुण्ड को तमाम अपशब्द कहे।
भगवान वक्रतुण्ड ने प्रभावशाली स्वर में कहा कि यदि तुझे अपने प्राणप्रिय हैं तो शस्त्र रखकर मेरी शरण में आ जा नहीं तो निश्चित ही मारा जाएगा।
भगवान वक्रतुण्ड का भयानक रूप देखकर मत्सरासुर अत्यंत भयभीत हो गया। उसकी सारी शक्ति क्षीण हो गई। भय के मारे वह कांपने लगा। विनयपूर्वक वक्रतुण्ड की स्तुति करने लगा।
उसकी प्रार्थना से संतुष्ठ होकर दयावान भगवान ने उसे अभय प्रदान किया और शांत जीवन जीने के लिए उसे पाताल लोक भेज दिया। इस तरह भगवान वक्रतुण्ड ने मत्सरासुर से देवताओं की रक्षा की।
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