Saturday, April 11, 2015

दूर हुआ अहंकार

भगवान गणेश ने महोदर अवतार मोहासुर का विनाश करने के लिया था। इस अवतार में उनका वाहन मूषक था। मोहासुर दैत्यराज शुक्राचार्य का प्रिय शिष्य था। इस दैत्य ने अपने गुरु से आशीर्वाद लेकर भगवान सूर्य का तप किया। भगवान सूर्य ने मोहासुर को सर्वत्र विजयी होने का वरदान दिया।

वर पाकर दैत्य मोहासुर अपने स्थान पर लौट गया। शुक्राचार्य ने उसका दैत्यराज के रूप में अभिषेक किया। मोहासुर ने अपने छल-पराक्रम से तीनों लोकों पर अधिकार प्राप्त कर लिया। इसके बाद वह अपनी पत्नी मदिरा के साथ सुखपूर्वक रहने लगा और विजय अभियान जारी रखा।

तीनों लोकों पर जब मोहासुर का राज्य हो गया तो देवता चिंतित हो गए। सभी देवता सूर्य देवता के पास गए, सूर्य देवता ने कहा कि उन्हें भगवान गणेशजी को प्रसन्न करने के लिए उनके एकाक्षर मंत्र गं का जप करना होगा। सभी देवताओं ने मंत्र का जाप किया। जप से प्रसन्न होकर गणेशजी, महोदर के अवतार में प्रकट हुए।

भगवान महोदर ने सभी देवताओं को आश्वासन दिया कि वह मोहासुर की समस्या से दूर कर देंगे। वह मोहासुर से युद्ध करने के लिए रणभूमि की ओर चल दिए। यह समाचार देवर्षि नारद ने मोहासुर को दिया और भगवान महोदर के परम तेजस्वी रूप के बारे में बताया।

उसी समय भगवान महोदर ने भगवान विष्णु को दूत बनाकर मोहासुर के पास भेजा ताकि वह देवताओं से मित्रता की ओर हाथ बड़ाए। भगवान विष्णु ने मोहासुर को समझाया और वह मान गया।

यह सब सुनकर मोहासुर का अहंकार नष्ट हो गया। उसने भगवान विष्णु से प्रार्थना की अगर भगवान महोदर मेरे नगर में आएं तो मैं धन्य हो जाउंगा।

भगवान महोदर, मोहासुर के घर पहुंचे, उसने श्रद्धापूर्वक उनकी पूजा की। उसने भगवान से कहा कि देवताओं और मुनियों को अब वह तंग नहीं करेगा और उनका राज्य लौटा देगा। सहज कृपालु भगवान महोदर, मोहासुर की भक्ति से प्रसन्न हुए और उसे जीवनदान देकर चले गए।


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