बहुत समय पहले भस्मासुर नाम का एक राक्षस था। उसे भगवान शिव वरदान दिया था कि वह जिस भी व्यक्ति के सिर पर हाथ रखेगा वो भस्म हो जाएगा। इस वरदान के कारण ही उसे भस्मासुर नाम मिला। उसने सर्वप्रथम भगवान भोलेनाथ को ही भस्म करने का विचार किया।
भस्मासुर से अपने प्राणों की रक्षा के लिए कैलाश पर्वत से पलायन कर गए। भोलेनाथ आगे-आगे और भस्मासुर उनके पीछे भागने लगा। भागते-भागते शंकरजी एक पहाड़ी के पास रुक गए और फिर उन्होंने इस पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। बाद में विष्णुजी ने आकर उनकी जान बचाई।
कहते हैं वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा पहाड़ियों पर है। इन खूबसूरत पहाड़ियों को देखने से ही मन शांत हो जाता है। इस गुफा में हर दिन सैकड़ों की तादाद में शिवभक्त शिव की अराधना करते हैं।
भगवान शिव के प्रतीक चिह्न
भगवान शंकर के चिन्ह के रूप में रुद्राक्ष और त्रिशूल को पूजा जाता है। कुछ लोग डमरू और अर्ध चंद्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं। हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।
भगवान शिव की जटाएं हैं। उन जटाओं में एक चंद्र चिह्न होता है। उनके मस्तष्क पर तीसरी आंख है। वे गले में सर्प और रुद्राक्ष की माला लपेटे रहते हैं। उनके एक हाथ में डमरू तो दूसरे में त्रिशूल है। वे संपूर्ण देह पर भस्म लगाए रहते हैं।
उनके शरीर के निचले हिस्से को वे व्याघ्र चर्म से लपेटे रहते हैं। वे वृषभ की सवारी करते हैं और कैलाश पर्वत पर ध्यान लगाए बैठे रहते हैं। माना जाता है कि केदारनाथ और अमरनाथ में वे विश्राम करते हैं।
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