भगवान गणेशजी को एकदंत भी कहा जाता है। यह अवतार उन्होंने मदासुर का वध करने के लिए लिया था। एकदंत भगवान का वाहन मूषक है। पुराणों में वर्णित है कि मदासुर महर्षि च्यवन का पुत्र था।
दैत्य प्रवृत्ति का होने के कारण, उसकी आसुरी प्रवृत्ति ने उसे संपूर्ण ब्रह्मांड का स्वामी बनने के लिए प्रेरित कर दिया। मदासुर ने अपने गुरु शुक्राचार्य से आशीर्वाद लेकर मां भगवती का तप करने घनघोर जंगल की ओर निकल पड़ा।
घोर तप करने के दौरान मदासुर के शरीर पर दीमकों ने बांबी बना ली। उसके चारों तरफ पेड़-पौधे पनपने लगे। उसके कठोर तप से मां भगवती प्रसन्न हुईं और उन्होंने मदासुर को निरोग होने के साथ ही ब्रह्मण्ड का राज्य प्राप्त होने का वरदान दिया।
वरदान पाकर मदासुर अहंकारी हो गया। उसने सबसे पहले पृथ्वी पर अपना साम्राज्य स्थापित किया। फिर स्वर्ग पर चढ़ाई कर वह भी जीत लिया। मदासुर के शासक बनते ही हर तरफ दुविधाओं का पहाड़ टूट पड़ा।
यह सब देखकर देवता सनत्कुमार के पास गए और उनसे मदासुर से छुटकारा पाने के बारे में सलाह मांगी। सनत्कुमार ने कहा कि अगर आप भगवान एकदंत का तप करेंगे तो वह इस समस्या से छुटकारा दिला सकते हैं। देवताओं ने लगभग सौ वर्षों तक एकदंत का तप किया।
यह देखकर एकदंत प्रसन्न हुए और उन्होंने देवताओं को मदासुर से सुरक्षा का वचन दिया। जब यह बात मदासुर को पता चली तो वह भगवान एकदंत से युद्ध करने के लिए आतुर हो गया। उसकी मनोकामना को देखते हुए, एकदंत उसके रास्ते में ही प्रकट हो गए।
वह चूहे पर सवार थे। उनकी आकृति बहुत ही विशाल थी। उन्होंने कहा मदासुर तुम जीवित रहना चाहते हो, तो देवताओं से द्वेष छोड़ दो नहीं तो मैं तुम्हारा वध कर दूंगा।
मदासुर नहीं माना वह युद्ध के लिए तैयार हो गया। भगवान एकदंत ने उस पर परशु से प्रहार किया। वह बेहोश होकर गिर गया। बेहोशी टूटने पर उसे ध्यान आया कि यह तो साक्षात् परमात्मा हैं। उसने हाथ जोड़कर एकदंत की स्तुति की। इससे प्रसन्न हो भगवान एकदंत ने मदासुर को पाताल जाने का सुझाव दिया। मदासुर सुझाव को मानकर पाताल लोक चला गया।
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