जब भगवान शंकर का क्रोध किसी पर बरसता है तो चारो ओर काला अंधेरा छा जाता है, बिजली चमकती है, भगवान शिव के तांडव की तरह धरती पर भी वातावरण में उथल-पुथल नज़र आता है। कुछ ऐसा ही दृश्य कुल्लू में देखने को मिलता है, परंतु कहां?
दिल्ली से 600 किलोमीटर की दूरी पर, खूबसूरत पहाड़ों से घिरा शहर कुल्लू भगवान शिव के एक प्रकोप से पीड़ित है। वैसे तो यह जगह अपने सौंदर्य के लिए विश्व भर में जानी जाती है।
जो कोई भी कुल्लु में छुट्टियां बिताने जाता है, वह इसके सुंदर वातावरण से मोहित हो उठता है, और उसका यहां से वापस आने का मन नहीं करता। कुल्लू पूरे भारत में अपनी सुंदर घाटियों के लिए जाना जाता है। इन्हीं हरी-भरी घाटियों के बीच ‘बिजली महादेव’ नाम का एक मंदिर स्थित है।
यह भगवन शिव का मंदिर है, परंतु यह कोई साधारण मंदिर नहीं है। इस मंदिर का नाम बिजली महादेव मंदिर होने के पीछे छिपा है एक गहरा राज़। कई वर्षों पहले हुई एक घटना के आधार पर यहां बिजली महादेव नाम का मंदिर बनाया गया था।
सुनने में यह नाम जरूर अजीब लगता है, लेकिन कुल्लू में केवल इस मंदिर का नाम ही बिजली महादेव नहीं है। जिस पहाड़ पर यह मंदिर बना हुआ है, उसके साथ पास में स्थित गांव का नाम भी बिजली महादेव ही है। लेकिन क्या है इस नाम का राज़?सुनने में यह नाम जरूर अजीब लगता है, लेकिन कुल्लू में केवल इस मंदिर का नाम ही बिजली महादेव नहीं है। जिस पहाड़ पर यह मंदिर बना हुआ है, उसके साथ पास में स्थित गांव का नाम भी बिजली महादेव ही है। लेकिन क्या है इस नाम का राज़
स्थानीय लोगो अनुसार अनुसार भगवान शिव के इस मंदिर में विराजमान शिवलिंग पर आकाश से जोरदार बिजली गिरती है, जो इस पवित्र शिवलिंग को टुकड़ों में बिखेर देती है। केवल शिवलिंग ही नहीं, मंदिर की दीवारों पर भी कुछ निशान देखे जा सकते हैं।
इन निशानों को देखकर पता लगता है कि जब मंदिर के भीतर रखे शिवलिंग पर बिजली आकर गिरती होगी, तब उसकी कुछ चिंगारियां मंदिर के अंदर की दीवारों पर भी आ जाती होंगी। जिस कारण दीवारों पर कुछ निशान रह जाते हैं।
इस प्रकार से मन्दिर के अंदर बिजली गिरने का क्या कारण है? इसका जवाब एक पौराणिक कथा में मिलता है। घाटी के लोगों का मानना है कि कई हजार वर्ष पूर्व कुल्लू की इस घाटी में कुलान्त नामक दैत्य रहता था।
यह दैत्य अजगर की तरह दिखता था और बेहद विशाल भी था। कुल्लू के पास व्यास नहीं बहती है। उस दैत्य की नज़र इसी नदी पर थी। कुलान्त दैत्य का मकसद व्यास नदी के प्रवाह को रोककर घाटी को जलमग्न करना था ताकि वह घाटी में रह रहे जीव-जंतुओं को मिटा सके।
परन्तु इसका यह मकसद कामयाब ना हो सका। कुलान्त दैत्य की इस साजिश का पता भगवान शिव को लगा। भगवान शिव ने जल्द ही कुलान्त दैत्य को सबक सिखाने की योजना बनाई।
वे प्रकट हुए और सबसे पहले उसके पास जाने के लिए उसे अपने विश्वास में ले लिया। भगवान शिव ने उसके कान में कहा कि ‘तुम्हारी पूंछ में आग लग गई है’। इतना सुनते ही जैसे ही उस दानव ने पीछे मुड़कर देखा, तभी भगवान शिव ने उसके सिर पर अपने त्रिशूल से एक जोरदार वार किया।
उस वॉर से कुलांत राक्षस की मौत हो गई। माना जाता है कि जैसे ही उसकी मौत हुई, उसका पूरा शरीर एक विशाल पर्वत में तब्दील हो गया। कुलान्त के शरीर ने इतना बड़ा आकार लिया कि यह वर्तमान कुल्लू के एक बड़े भाग को घेरता है।
मान्यत्ता हे की कुल्लू घाटी का बिजली महादेव से रोहतांग दर्रा और उधर मंडी के घोग्घरधार तक की घाटी कुलान्त के शरीर से निर्मित है। संक्षेप में यह भी कहा जाता है कि शायद कुल्लू घाटी का नाम इसी कुलान्त दैत्य के नाम से ही पड़ा है।
तो क्या आज के समय में कुलान्त दैत्य के शरीर से निर्मित पहाड़ को नष्ट करने के लिए महादेव बिजली गिराते हैं? नहीं, ऐसा नहीं है। मान्यता है कि दैत्य को मारने के बाद भगवान शिव ने इंद्र देवता को इस पर्वत पर हर बाहरवें साल में बिजली गिराने का आदेश दिया गया था।
यदि सिद्दे इस पर्वत पर गिरती तो इस घाटी को जान के साथ-साथ धन का नुकसान भी हो सकता था। इसी कारणवश शिव के आदेश से इंद्र द्वारा केवल मंदिर के भीतर रखे शिवलिंग पर बिजली गिराई जाती है।
स्थानीय लोग या घाटी में मौजूद किसी अन्य वस्तु को कोई नुकसान ना हो, इसलिए बिजली का कहर भगवान शिव स्वयं अपने शिवलिंग पर ले लेते हैं। बिजली मंदिर के भीतर रखे शिवलिंग से जुड़ा एक और तथ्य बेहद रोचक है।
आकाश शिवलिंग पर बिजली गिरने के बाद शिवलिंग का एक बड़ा हिस्सा तहस-नहस हो जाता है। लेकिन मंदिर के सेवक इसका पुन: निर्माण नहीं करवाते। बल्कि आसपास गिरे टुकड़ों को उठाकर मक्खन की मदद से शिवलिंग पर जोड़ दिया जाता है।
मान्यता हे की यह मक्खन शिवलिंग पर मरहम का कार्य करता है और ऐसा होता भी है। कुछ समय के पश्चात् बेहद चमत्कारी रूप से शिवलिंग खुद-ब-खुद अपने पूर्ण रूप में विकसित हो जाता है।
बिजली महादेव मंदिर की कुल्लू घाटी में बड़ी मान्यता है। हर वर्ष शिवरात्रि के अवसर पर यहां भक्तों का एक विशाल जमावड़ा लगता है। मंदिर के भीतर एक हुंडी रखी गई है, जहां भक्त किसी भी प्रकार की दान-दक्षिणा कर सकते हैं।
इसके आलावा मंदिर के भीतर पूजा सामग्री भी उपलब्ध हो जाती है, जिसके लिए कोई भुगतान नहीं करना होता है। मंदिर के ठीक सामने की ओर पत्थर के कुछ स्तम्भ विराजमान हैं। भक्त मंदिर के सामने रखे 20 मीटर ऊंचे स्तम्भ की भी पूजा करते हैं।
दिल्ली से 600 किलोमीटर की दूरी पर, खूबसूरत पहाड़ों से घिरा शहर कुल्लू भगवान शिव के एक प्रकोप से पीड़ित है। वैसे तो यह जगह अपने सौंदर्य के लिए विश्व भर में जानी जाती है।
जो कोई भी कुल्लु में छुट्टियां बिताने जाता है, वह इसके सुंदर वातावरण से मोहित हो उठता है, और उसका यहां से वापस आने का मन नहीं करता। कुल्लू पूरे भारत में अपनी सुंदर घाटियों के लिए जाना जाता है। इन्हीं हरी-भरी घाटियों के बीच ‘बिजली महादेव’ नाम का एक मंदिर स्थित है।
यह भगवन शिव का मंदिर है, परंतु यह कोई साधारण मंदिर नहीं है। इस मंदिर का नाम बिजली महादेव मंदिर होने के पीछे छिपा है एक गहरा राज़। कई वर्षों पहले हुई एक घटना के आधार पर यहां बिजली महादेव नाम का मंदिर बनाया गया था।
सुनने में यह नाम जरूर अजीब लगता है, लेकिन कुल्लू में केवल इस मंदिर का नाम ही बिजली महादेव नहीं है। जिस पहाड़ पर यह मंदिर बना हुआ है, उसके साथ पास में स्थित गांव का नाम भी बिजली महादेव ही है। लेकिन क्या है इस नाम का राज़?सुनने में यह नाम जरूर अजीब लगता है, लेकिन कुल्लू में केवल इस मंदिर का नाम ही बिजली महादेव नहीं है। जिस पहाड़ पर यह मंदिर बना हुआ है, उसके साथ पास में स्थित गांव का नाम भी बिजली महादेव ही है। लेकिन क्या है इस नाम का राज़
स्थानीय लोगो अनुसार अनुसार भगवान शिव के इस मंदिर में विराजमान शिवलिंग पर आकाश से जोरदार बिजली गिरती है, जो इस पवित्र शिवलिंग को टुकड़ों में बिखेर देती है। केवल शिवलिंग ही नहीं, मंदिर की दीवारों पर भी कुछ निशान देखे जा सकते हैं।
इन निशानों को देखकर पता लगता है कि जब मंदिर के भीतर रखे शिवलिंग पर बिजली आकर गिरती होगी, तब उसकी कुछ चिंगारियां मंदिर के अंदर की दीवारों पर भी आ जाती होंगी। जिस कारण दीवारों पर कुछ निशान रह जाते हैं।
इस प्रकार से मन्दिर के अंदर बिजली गिरने का क्या कारण है? इसका जवाब एक पौराणिक कथा में मिलता है। घाटी के लोगों का मानना है कि कई हजार वर्ष पूर्व कुल्लू की इस घाटी में कुलान्त नामक दैत्य रहता था।
यह दैत्य अजगर की तरह दिखता था और बेहद विशाल भी था। कुल्लू के पास व्यास नहीं बहती है। उस दैत्य की नज़र इसी नदी पर थी। कुलान्त दैत्य का मकसद व्यास नदी के प्रवाह को रोककर घाटी को जलमग्न करना था ताकि वह घाटी में रह रहे जीव-जंतुओं को मिटा सके।
परन्तु इसका यह मकसद कामयाब ना हो सका। कुलान्त दैत्य की इस साजिश का पता भगवान शिव को लगा। भगवान शिव ने जल्द ही कुलान्त दैत्य को सबक सिखाने की योजना बनाई।
वे प्रकट हुए और सबसे पहले उसके पास जाने के लिए उसे अपने विश्वास में ले लिया। भगवान शिव ने उसके कान में कहा कि ‘तुम्हारी पूंछ में आग लग गई है’। इतना सुनते ही जैसे ही उस दानव ने पीछे मुड़कर देखा, तभी भगवान शिव ने उसके सिर पर अपने त्रिशूल से एक जोरदार वार किया।
उस वॉर से कुलांत राक्षस की मौत हो गई। माना जाता है कि जैसे ही उसकी मौत हुई, उसका पूरा शरीर एक विशाल पर्वत में तब्दील हो गया। कुलान्त के शरीर ने इतना बड़ा आकार लिया कि यह वर्तमान कुल्लू के एक बड़े भाग को घेरता है।
मान्यत्ता हे की कुल्लू घाटी का बिजली महादेव से रोहतांग दर्रा और उधर मंडी के घोग्घरधार तक की घाटी कुलान्त के शरीर से निर्मित है। संक्षेप में यह भी कहा जाता है कि शायद कुल्लू घाटी का नाम इसी कुलान्त दैत्य के नाम से ही पड़ा है।
तो क्या आज के समय में कुलान्त दैत्य के शरीर से निर्मित पहाड़ को नष्ट करने के लिए महादेव बिजली गिराते हैं? नहीं, ऐसा नहीं है। मान्यता है कि दैत्य को मारने के बाद भगवान शिव ने इंद्र देवता को इस पर्वत पर हर बाहरवें साल में बिजली गिराने का आदेश दिया गया था।
यदि सिद्दे इस पर्वत पर गिरती तो इस घाटी को जान के साथ-साथ धन का नुकसान भी हो सकता था। इसी कारणवश शिव के आदेश से इंद्र द्वारा केवल मंदिर के भीतर रखे शिवलिंग पर बिजली गिराई जाती है।
स्थानीय लोग या घाटी में मौजूद किसी अन्य वस्तु को कोई नुकसान ना हो, इसलिए बिजली का कहर भगवान शिव स्वयं अपने शिवलिंग पर ले लेते हैं। बिजली मंदिर के भीतर रखे शिवलिंग से जुड़ा एक और तथ्य बेहद रोचक है।
आकाश शिवलिंग पर बिजली गिरने के बाद शिवलिंग का एक बड़ा हिस्सा तहस-नहस हो जाता है। लेकिन मंदिर के सेवक इसका पुन: निर्माण नहीं करवाते। बल्कि आसपास गिरे टुकड़ों को उठाकर मक्खन की मदद से शिवलिंग पर जोड़ दिया जाता है।
मान्यता हे की यह मक्खन शिवलिंग पर मरहम का कार्य करता है और ऐसा होता भी है। कुछ समय के पश्चात् बेहद चमत्कारी रूप से शिवलिंग खुद-ब-खुद अपने पूर्ण रूप में विकसित हो जाता है।
बिजली महादेव मंदिर की कुल्लू घाटी में बड़ी मान्यता है। हर वर्ष शिवरात्रि के अवसर पर यहां भक्तों का एक विशाल जमावड़ा लगता है। मंदिर के भीतर एक हुंडी रखी गई है, जहां भक्त किसी भी प्रकार की दान-दक्षिणा कर सकते हैं।
इसके आलावा मंदिर के भीतर पूजा सामग्री भी उपलब्ध हो जाती है, जिसके लिए कोई भुगतान नहीं करना होता है। मंदिर के ठीक सामने की ओर पत्थर के कुछ स्तम्भ विराजमान हैं। भक्त मंदिर के सामने रखे 20 मीटर ऊंचे स्तम्भ की भी पूजा करते हैं।
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