Tuesday, April 7, 2015

कहा जाता है कि हर इन्सान के भीतर बुराइयां होती हैं तो अच्छाइयां भी पाई जाती हैं। इन्सान में संत और शैतान - दोनों छुपे होते हैं। जहां जो प्रबल होता है, इन्सान वैसा ही बन जाता है।

एक वृद्ध महिला बड़ी-सी गठरी लिए चली जा रही थी। चलते-चलते वह थक गई। तभी उसने देखा कि एक घुड़सवार चला आ रहा है।

उसे देख महिला ने आवाज दी, अरे बेटा, एक बात तो सुन। घुड़सवार रुक गया। उसने पूछा, क्या बात है माई? वृद्धा ने कहा, बेटा, मुझे उस सामने वाले गांव में जाना है। बहुत थक गई हूं। यह गठरी उठाई नहीं जाती। तू भी शायद उधर ही जा रहा है। यह गठरी घोड़े पर रख ले। मुझे चलने में आसानी हो जाएगी।

उस व्यक्ति ने कहा, माई, तू पैदल है। मैं घोड़े पर हूं। गांव अभी बहुत दूर है। पता नहीं तू कब वहां पहुंचेगी। वहां पहुंचकर क्या तेरी प्रतीक्षा करता रहूंगा?

यह कहकर वह चल पड़ा। कुछ ही दूर जाने के बाद उसने सोचा, मैं भी कितना मूर्ख हूं! वह वृद्धा है, ठीक से चल भी नहीं सकती। मुझे गठरी दे रही थी। संभव है उस गठरी में कोई कीमती सामान हो। मैं उसे लेकर भाग जाता तो कौन पूछता? चल वापस, गठरी ले ले।

वह घूमकर वापस आया और वृद्धा से बोला, माई, ला अपनी गठरी। मैं ले चलता हूं। गांव में रुक कर तेरी राह देखूंगा।

वृद्धा बोली, ना बेटा, अब तू जा, मुझे गठरी नहीं देनी।

घुड़सवार ने पूछा, ऐसा क्या हुआ? यह उलटी बात तुझे किसने समझाई?

वृद्धा मुस्कुराकर बोली, उसी ने जिसने तुझे यह समझाया कि माई की गठरी ले ले। जो तेरे भीतर बैठा है वही मेरे भीतर भी बैठा है। तुझे उसने कहा कि गठरी ले और भाग जा। मुझे उसी ने समझाया कि गठरी न दे, नहीं तो वह भाग जाएगा।

कहा जाता है कि हर इन्सान के भीतर बुराइयां होती हैं तो अच्छाइयां भी पाई जाती हैं। इन्सान में संत और शैतान - दोनों छुपे होते हैं। जहां जो प्रबल होता है, इन्सान वैसा ही बन जाता है।

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